बदलता दौर
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अब कहां वो हुस्न ,वो अदा,वो नजाकत ,
शर्मो हया पर्दा नशीनों सी ।
ज़माने के बदलते दौर ने छीन लिया सब ,
अब कहां रही वो बात इनमें नाजनीनों सी।
पाकीज़गी को छोड़ जिस्म की नुमाइश करती हैं ,
नहीं कोई तहजीब ओ तबियत उन जैसी हसीनों सी।
अब कहां वो हुस्न ,वो अदा,वो नजाकत ,
शर्मो हया पर्दा नशीनों सी ।
ज़माने के बदलते दौर ने छीन लिया सब ,
अब कहां रही वो बात इनमें नाजनीनों सी।
पाकीज़गी को छोड़ जिस्म की नुमाइश करती हैं ,
नहीं कोई तहजीब ओ तबियत उन जैसी हसीनों सी।