बनायें प्यार का जहां
गजल/गीतिका
*काफिया ~ ओं
रदिफ ~ से यहाँ
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क्या मिला अब तलक नफरतों से यहाँ!!
जो भी चाहो मिले हौसलों से यहाँ!!
हम न उलझें कभी बात बे बात में!!
नफरतें ही मिली काफिरों से यहाँ!!
सोच लो आशियाना बने प्यार का!!
कुछ न हासिल हुआ जाहिलों से यहाँ!!
हमनें माना मुहब्बत ही राह ईश का!!
राह ए जन्नत मिले मुश्किलों से यहाँ!!
कुछ अलग चाहते हो करो प्यार तुम!!
बस हिकारत मिली साजिशों से यहाँ!!
उस खुदा ने बनाया ये सुंदर जहां!!
विष का प्याला मिला ताकतों से यहाँ!!
चलो आओ बनाऐं जहां प्यार का!!
कुछ न हासिल सनम बगावतों से यहाँ!!
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
?? मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार ….८४५४५५