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19 May 2022 · 1 min read

* फितरत *

डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

* फितरत *

कितनी किताबें पढ ली कितनी रवायतेंन देखी
हमसा ना कोई देखा हमसाया न कोई पाया
मिलने को मिले लाखों बातें भी हुई सबसे
मिले दिल किसी के दिल से ऐसा न कोई पाया ||

वो कह रहें हैं, हमसे, आकर के गुफ्त्गु करलो
फिर भूल जाओ सबको उनसा न होगा आया
हुआ धुआं धुआं जहाँ में, मैं जो उनके करीब आया
वो राख हो गये सब, जिसने था सितम ढाया ||

बन्दगी को अपनी सुरखाव, था जो समझा
सहरा में गुल खिलाने का उनको हुनर न आया
शौके फितर था जितना , उतना ही दिल जलाया
मिले दिल किसी के दिल से ऐसा न कोई पाया ||

बेटा अबोध समझो दुनिया है सराये फ़ानी
जिल्लत मिलेगी सबको जिसने भी दिल लगाया
मिलने को मिले लाखों बातें भी हुई सबसे
मिले दिल किसी के दिल से ऐसा न कोई पाया ||

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