“पृथ्वी”
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“पृथ्वी”
पृथ्वी टिकी नहीं है
शेषनाग के फन पर
न बैलों के सींग पर
न कछुए की पीठ पर
यह सिर्फ टिकी हुई है
इंसानी जज्बा जुनून जिद पर।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
(12वीं काव्य-कृति : ‘पत्थर के फूल’ से)
“पृथ्वी”
पृथ्वी टिकी नहीं है
शेषनाग के फन पर
न बैलों के सींग पर
न कछुए की पीठ पर
यह सिर्फ टिकी हुई है
इंसानी जज्बा जुनून जिद पर।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
(12वीं काव्य-कृति : ‘पत्थर के फूल’ से)