पिता की याद।
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/6a7b83931d8bd08d0c0fe2ef9b402f50_459083d9679c6619faed2a01df03a2b6_600.jpg)
इस काव्य रचना को मैंने उस वक्त लिखा जब आदरणीय पापा जी की पुण्यतिथि पर उनकी बहुत याद आ रही थी , उन्ही यादों के समुंदर में गोते लगाते हुए मैं पहुँच गया उस समय में, जब मैं सत्रह वर्ष का था और अचानक मेरे पापा जी का देवलोकगमन हो गया,उस वक्त मेरी क्या मनःस्थिति थी उसका सजीव चित्रण इस काव्यरचना में मैंने किया है-
पापा -पापा पुकारता,
दिन और रात मैं।
घोर अश्रु बहाता,
सोच-सोच याद में।
तारों को निहारता,
घोर काली रात में।
डरता, सहम जाता,
सोते सोते रात में।
न पीता ,न खाता,
न हंसता ,न गाता।
तस्वीर देख देख,
खो जाता याद में।
वो मंजर जाता नहीं,
जो हुआ था रात में।
यकीं सचमुच होता नहीं,
आप नहीं हो साथ में।
आपके दर्शन थे सर्वसुलभ,
आपके अंतिम दर्शन कर।
अंतिम का मतलब जाना,
आपकी अंतिम यात्रा में।
जिस अग्नि से ,
तापता, ठंड भगाता था।
उससे खुद भागा था,
देख आपको जाते उसमें।
जिन पंचतत्वों से ,
नश्वर ये देह बना ।
उन सबका मतलब,
मैंने आज ही जाना।
जिन उत्तम संस्कारों से,
मुझे आपने आकार दिया।
आपका अंतिम संस्कार कर,
संसार का मतलब जाना मैं।
जिन केशों पर हाथ फेर,
आशीष देते थे आप।
उनका त्याग करने पर ही,
त्याग का मतलब जाना मैं।
विश्वास पूरा है मुझे,
हों आप हर पल साथ में।
‘दीप’ प्रज्वलित रहे,
सदा आपके प्रकाश में।
-जारी
©कुलदीप मिश्रा