पापा की परी
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पापा की परी
ईश्वर की कृपा और बड़ों के आशीर्वाद से कोरोना की पहली और दूसरी लहर में मैं और मेरा परिवार पूरी तरह से सुरक्षित रहा। लाख सावधानियां बरतने के बावजूद हम तीसरी लहर से अछूता नहीं रह सके।
11-12 जनवरी 2022 की रात ठीक बारह बजे राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग की ओर से मैसेज आया कि मेरी कोरोना आर.टी.पी.सी.आर. रिपोर्ट पॉजीटिव आई है। आशंका थी, इसलिए ऐहतियातन पहले ही खुद को परिवार से अलग कर लिया था। पुष्टि होने के बाद अगले ही दिन होम आइसोलेशन की सारी औपचारिकताएँ ऑनलाइन पूरी करके निर्धारित दवाइयाँ लेने लगा।
हमारी पाँच वर्षीया बेटी परिधि, जिसे हम सभी प्यार से परी संबोधित करते हैं, अक्सर मेरे कमरे, जहाँ मैं आइसोलेटेड था, के बाहर आकर झाँकती रहती। उसकी मम्मी और भैया के बार-बार मना करने के बावजूद वह हर घंटे दो घंटे में एक बार झाँकने पहुँच ही जाती। नजरें मिलते ही बहुत धीमी-सी आवाज में पूछती, “पापा, अब कैसा लग रहा है आपको ? अभी की दवाई खा लिए हैं न ?”
उसकी मनोदशा को देख मन भर आता था। आँखें नम हो जाती थीं। जी करता था कि बच्ची को सीने से लगा लूँ। पर मजबूर था। कोई भी रिस्क नहीं ले सकता था। तब मैं कोरोना पॉजीटिव जो था।
लगभग सप्ताह भर बाद जब मेरा होम आइसोलेशन पूरा हो गया और मैं पुनः अपनी सामान्य दिनचर्या में लौटने लगा, तो पूरे दिनभर वह मेरे साथ चिपकी रही।
बातचीत के दौरान घर के बड़े सयानों की तरह बोलने लगी, “पापा, आपको तो पता ही है कि पिछले कई महीनों से मेरे नानाजी बीमार हैं। उनकी बीमारी की वजह से जैसे मेरी मम्मी बहुत परेशान हैं, वैसे ही आपके बीमार हो जाने से मैं भी बहुत परेशान हो गई थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। आज जबकि आप ठीक हो गए हैं, तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।”
महज पाँच साल की बेटी के मुँह से ऐसी गंभीर बात सुनकर मन द्रवित हो गया और मैंने उसे सीने से लगा लिया।
वाकई बेटियाँ बहुत ही केयरिंग नेचर की होती है।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़