*पानी केरा बुदबुदा*
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/7dc8115c368e7e22bf1e139eaa9e7870_7bc711b7c20973678b364dd634c7966d_600.jpg)
Dr Arun Kumar shastri
* पानी केरा बुदबुदा *
टूट कर शीशे सा बिखर जाना, बहुत आसान होता है ।
शिकस्ता साज़ पर नगमे सुरीले गा कर,दिखाये वही इंसान होता है ।
नतीजों से प्रारब्ध का अंदाजा लगाकर ,
बहक जाना,
किसी अनजान के पहलू में आकर महक जाना ।
जैसा ही एक ही बाकया शानदार होता है ,मुसीबतों के बीच सजग रहना ,ये , कहना
बहुत आसान होता है थपेड़े मौसम के जिसने झेले हों
असलियत में वही तो पहलवान होता है ।
गमों गुलखार सी दुनिया ,और तीखे – तीखे वाण सी दुनिया सदा ही वेधती दिल को ।
सभी से, बचा ले पल्लू – टिललू सा, वही उस्ताद होता है ।
सिखा कर प्यार की कविता ,दिखा कर सब्ज हरियाली ,
चढ़ा कर नाक पर चश्मा, जो देखता है तुम्हें, लाली
समझ ले चाल जो इनकी, वही तो पार होता है ।
टूट कर शीशे सा बिखर जाना, बहुत आसान होता है ।
शिकस्ता साज़ पर नगमे सुरीले गा कर, दिखाये वही इंसान होता है ।
मैं कहता मैं नहीं डरता मगर डरता है दिल तो मेरा भी।
यही हिम्मत सँजोना जोड़ कर अपने को रखना कहां आसान होता है।
तेरे हाथों किसी का भला हो अगर जाए, क्या बुरा है।
यहां हर जीव अपने हाथ से कोई पुण्य कर जाए क्या बुरा है।
प्रभु को कर प्रणाम ले चरण रज तू लगा मस्तक पे अपने भी ।
तेरे दिन की इस तरह हो शुरुआत मेरे बच्चे तो क्या बुरा है।
टूट कर शीशे सा बिखर जाना, बहुत आसान होता है ।
शिकस्ता साज़ पर नगमे सुरीले गा कर दिखाये वही इंसान होता है ।