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10 Nov 2016 · 1 min read

परिन्‍दे

परिन्‍दे की झूंड में मैं,
उड़ रहा नील गगन में,
खुश हूं सबके साथ,
झूम रहा हूँ अपने मगन में।

चीं-चीं, चूं-चूं के कलरव से,
बना रहा हूँ मधुर संगीत,
एक साथ हम हरदम रहते,
कभी न तोड़ते अपने मीत।

आजाद उड़ता हूँ गगन में,
कहीं न मिलता हमको शीर्ष,
आ जाता हूँ फिर धरा पर,
घर हमारे हैं वृक्षों के शीर्ष।

कोई कुचक्र रचते मुझे फाँसने,
जलते हैं उन्‍मुक्‍त देखकर,
आजदी छिन लेते हैं हमारी,
अपने जाल में मुझे फाँसकर।

……………. मनहरण

Language: Hindi
540 Views
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