“परिंदे की अभिलाषा”
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/a1d0dec14f1fa74c460bcc4c5b171673_1547a2a749915683e3c06416332bbf0d_600.jpg)
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
==================
मुझे दूर क्षितिज में उड़ने दो
जो मन करता है करने दो
ना रोको ना टोको मुझको
मुझे नील गगन को छूने दो
मैं उड़ना चाहूँ देश देश
दीवारें हमको ना रोके
भेद नहीं करना आता
कोई मुझे कितना टोके
उड़ उड़ कर जग में घूमने दो
सब धरती को मुझे चूमने दो
ना रोको ना टोको मुझको
मुझे नील गगन को छूने दो
संदेश प्यार का देना है
बीज शांती का बोना है
नफरत को दूर भगाके
प्रगति केवल चुनना है
बात मुझे सबको समझने दो
खुशिओं के पल तो आने दो
ना रोको ना टोको मुझको
मुझे नील गगन को छूने दो
भाषाएं हैं अलग अलग
फिरभी सबको जानते हैं
वेष हमारे अलग थलग
लोगों को पहचानते हैं
उनलोगों में प्यार बढ़ाने दो
नफरत की दीवार गिरने दो
ना रोको ना टोको मुझको
मुझे नील गगन को छूने दो
जगमें हो सबका विकास
कोई बँचित ना रह पाए
पर ध्यान रहे कार्बन का
उत्सर्जन कभी ना हो पाए
मुझे प्रकृति के गुण गाने दो
पर्यावरण मंत्र को सुनने दो
ना रोको ना टोको मुझको
मुझे नील गगन को छूने दो
मुझे दूर क्षितिज में उड़ने दो
जो मन करता है करने दो
ना रोको ना टोको मुझको
मुझे नील गगन को छूने दो !!
============
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत
26.12.2023