परमब्रह्म सबको चाहता भरपूर हैैैै :: जितेन्द्रकमल आनंद ( ९३)
घनाक्षरी छंद
——————-
परमब्रह्म सबको चाहता भरपूर है ,
उनकी कृपा से होता भक्त सिंधु — पार है ।
खोल दो बस खिडकियॉ अपने मकान की ,
उनका तो खुला ही हुआ ह्रदय – द्वार है ।
जो त्रिगुण — अतीत भी है , सगुण– साकार भी ,
भक्तों काो करे निर्भार , वो स्वयं निर्भार है ।
गति दे वह जीवन को , स्वस्थ कर हमको ,
उनको भी चाहिए अब ऱखना ध्यान है ।।
—- जितेन्द्र कमल आनंद