घुंटन जीवन का🙏
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घुंटन🙏
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नारी न निराश करो मन को
अद्भूत नगीना देती जग को
सौन्दर्य सुंदरता कुदरत की
रंग भरी रंगगोली प्रकृति की
सुन्दर काया समुंदर माया
चंचल चंचला चाँदनी चेहरा
ममता दया करूणा की छाया
वाणी बोली सहज स्वभाव
रुहानी जीवन अमृत कलश
मधुर मधु एक दूजे के साथ
क्लेस कपटहीन भाव भरा
जग जन निश्चल तेरा सहारा
सुख सुंदर सपनों की माया
क्यों मलीन करती है काया
ऑख निराली कानों में बाली
माथे की बिंदिया चमक निराली
रंग विरंगे कुसुम पिरोये निखरती
केशों की नंद्यावर्त में लहर तरंगें
गले सोहे स्वेत मोतियन की हार
स्वर्ण डायमण्ड दूजा नग बेकार
माथे मनमोहक बेल चमेली फूल
सुगंधित गजरा नयनों की कजरा
चांदनी सी चेहरा सुंदरता की
देवी सी पूजा होती है जग में
सबल साथ फेरे सात अनल
बांधते लहराते सेहरे का ताज
फिर भी रहती क्यों उदास ?
मान अपमान अभिमान का
सहारा साहस आस्था स्नेह
कर्म मर्म परंपरा संगीन अगम्य
कर्त्तव्यपथ सुगम बना चलती हो
फिर भी क्यों निराश दीखती हो
चित चिंतिंत चिंता भरी विभूति
ललाटों की रेखा बीच त्रिलोचन
रौद्र क्रुध कपाट रुद्र रूप लिए
क्यों ? दुर्गा काली दीख रही हो
आधुनिकता पसरी क़ालीन पर
नारी का सम्मान नहीं अपमान
तिरस्कार वासना भूत शिकार
त्राहीमाम करती करुणामयी
काया माया छोड़ आज तलवार
उठानें की सोची हो तो उठा ले
बन रणचंडी बचा नारी अस्मत
समझ आ रही इसलिए भृकुटी
तान खड़ी महाकाल लगती हो
घूंट घूंट जीवन टप टप आंसू
कलेजे में ताने बाने की वाणी
मुरझा ओठ नयनों की चमक
विवश निरस सी अबला क्यों
लालाचार मजबूर निज वतन
क्यों ? मघुर जीवन बर्बाद कर
जगत जन की आस छीनती हो
धिक्कार हुंकार विकार निकाल
मिटा काली होली दिवा दिवाली
प्रज्वलित कर दीप दिल नारी का
सबला बन प्रसून लाल निखार
त्याग घूंट घूंट घूंटन जीवन का
गर्व अभिमान बन मातृभूमि का
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तारकेश्वर प्रसाद तरुण