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11 Dec 2022 · 1 min read

नदिया रोये….

नदिया रोए बिलखे भाखर ।
कौन किसे समझाए आकर ।

सोच रहे हैं मांझी सारे
रखदे आँधी नौका लाकर l

देता है जग खुशियाँ लेकिन
दो में से दो रोज घटाकर l

बंध नदारद थे गीतों से
करता क्या वह मुखड़ा गाकर l

होने को तो मालिक हूँ मैं
लेकिन मुझसे अच्छे चाकर l

मँहगाई से जीत गई वह
लेकिन पर अपनी लाज गँवाकर l

देखो दिन कितने हँसते हैं
तिनके माचिस गाँव बसाकर l
000

अशोक दीप
जयपुर

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