नग मंजुल मन भावे
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नग मंजुल मन भावे
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उत्सेध पहाड़ी अतल खाड़ी
भरी सतरंगी हरियाली
रुक्ष की हिम फुहार
चांदनी सी पर्ण निराली
नीले अंबर सफेद घन घटा
सतरंगी इंद्रधनुष रंग बिखेरे
सांझ उषा की स्वर्णिम लाली
नगर बाला उमंग की हाली
कुदरत नग मंजुल मन भावे
मनोहर मंजुल तरु नग साजे
शब्द मुक्त रमणीय वादी
सुमन युक्त विहंगम भांति
पत्थर. चट्टान की घाटी
नीड़ विहीन. सूनी तम
शब्द मुक्त रमणीय वादी
सुमन युक्त विहंगम भांति
पाषाण चट्टान की घाटी
नीड़ विहीन सूनी तम
हिम शिखर झरने जल प्रपात
लुढ़क पटक टक्करा चट्टानों से
तराश पत्थर तस्वीर उभारती
मन मदिर की आराध्य बनाती
छल छल कल कल सरगम से
अमर मधुर संगीत सुनाती
नद्य नाले इक पथ निराली
महानदी इक आकार बनाती
गंगा यमुना सरस्वती नर्मदा
सिंधु कावेरी कृष्णा गोदावरी
नाम से नद्य जानी जाती
संग संगम से सागर बनाती
सागर संगम महासागर बनती
दे पानी जलद बरखा करती
रुख पावस जीवन जल
प्राणी में वायु संचार करती
खगचर नभचर जलचर तमीचर
निरवलम्ब सभ्यता दर्शाती
शैल शैलानी पर्यटन थल
नग मंजुल मन सबको भावे
विश्व पटल पर रंगोली इक
नग मंजुल मन चर्चा बनती
माँ भारती का मान बढ़ती
विश्व धरोहर बन कर इक
सुरक्षित संरक्षित हो जाते
नग मंजुल मन सबको भावे
+++++कवि :+++++++
तारकेश्वर प्रसाद तरुण