धृतराष्ट्र की आत्मा
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धृतराष्ट्र को मरे यूं तो कई युग बीत गए
बस ! कहने भर को ।
उसकी आत्मा अब भी विचरती है ,
नजर चाहिए उसे देखने को ।
कई दुशासन और दुर्योधन ,
जन्म लेते हैं रोज ,
हर घड़ी ,हर पल ,
हर आयु की नारी की मान प्रतिष्ठा,
हरने को ।
तैयार खड़े रहते हैं ,
समाज को दूषित करने को ।
अब कहां है ? कान्हा!
क्यों नहीं आता।
बचाने असंख्य द्रोपदीयों ,
की लाज को ।