* तुम न मिलती *
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डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* तुम न मिलती *
टूट जाना था लाज़िम मिरा
अगरचे तुम न मिलती
बहक जाना बहुत आसान था
जो न देती तुम सहारा
बहुत ज़ालिम है दुनिया
और इस दुनिया के सितमगर
डूब जाना था लाज़िम मिरा
अगरचे तुम न मिलती
भटकता फिर रहा था
ब्रह्मांड भर में मैं अकेला
बिखर जाना था लाज़िम
अगरचे तुम न मिलती
सभी हैं रंग दुनिया में
मगर अधिकांश श्वेत और काले
हुआ था मैं भी काला
अगरचे तुम न मिलती
उदासी से भरा था आकंठ
निराशा का था घेरा सर्वत्र
टूट जाना था लाज़िम मिरा
अगरचे तुम न मिलती