ताप
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“ताप”
सर्दी की धूप जैसे बुझी-बुझी सी होती है
मानो मिट गया हो अहंकार उसका
जो गर्मी में झुलसाती थी
तड़पाती थी
सताती थी
करती थी गर्व अपने ताप पर
पर वक्त करवट बदलता है
मिट जाता है अहंकार सभी का
झुक जाता है हर ताप किसी का
झुका जैसे रावण का मद
उससे बड़ा था जो राम का कद
हर कोई जो करता है ताप सूर्य सा
कुछ दिन कर ले,भर ले मन को
इक दिन धुंध धुंधली कर देगी ताप
फिर रह जायेगा केवल पश्चाताप।
😊🙏नन्दलाल सुथार “राही”