झोली मेरी प्रेम की
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शब्द है मौन
और
मौन है मुखर
प्रीत की डोर
का
माप है प्रचुर
भाव का वेग
बस
बांध से डटा
शांत है सतह
पर
भीतर ज्वार है बहुत
कल्पना के पार
की
मिसाल तुम अथक
झोली मेरी प्रेम
की
लबालब सहज
बरस दर बरस
बीते
आनंद के घटक
आते हरेक पल
भी
खुशी हर कदम
संदीप पांडे”शिष्य” अजमेर