जून की दोपहर (कविता)
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जल रही तवे सी,
जून की दोपहर,
बरस रहा हर तरफ,
मानो सूरज का कहर,
टपक रहीं माथे से,
टप -टप पसीने की बूंदे,
हुए सभी घर के कैदी,
कैसे कहीं घूमें?
आसमान को तकती नजरें,
बादल को ढूंढें,
सोच रहीं बार -बार,
होकर बेकरार,
कब आएगी बरखा रानी,
कब मिलेगा करार…???
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ०७/०६/२०१६.