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16 Mar 2017 · 1 min read

जिन्दगीं में और आफत अब न हो

हो चुकी जो भी सियासत अब न हो
मुल्क से मेरे बगावत अब न हो

आपको सौंपा है’ दिल अनमोल ये
इस अमानत में खयानत अब न हो

हमसे’ पीकर दूध हमको ही डसें
ऐसे’ साँपों की हिफाजत अब न हो

हम मरें जिन्दा रहें कुछ गम नहीं
गीदड़ों की बादशाहत अब न हो

जो लड़ा आपस में’ दे हमको यहाँ
धर्म की ऐसी तिजारत अब न हो

बचपने से पचपने तक सब सहीं
जिन्दगीं में और आफत अब न हो

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Books from बसंत कुमार शर्मा

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