जिंदगी
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जिंदगी
जिंदगी एक दरवाजा
संस्कारों …की दहलीज
मन…. के कपाट
कोई….. क्योंकर खोले
हर किसी के लिए
—–*——
जिंदगी एक चिट्ठी
बांचने से अधिक…
जांचते हैं
इसकी भौगोलिकता,
भौतिक सुन्दरता,
आंकते हैं
भौतिक मूल्यता
—–*—–
जिंदगी एक पतंग
वजूदी सत्ता की जंग
जाए तो जाए
कहां तक ……
या
न भी जा पाए
यहां से वहां तक ।
संगीता बैनीवाल