चांद छुपा बादल में
डा . अरुण कुमार शास्त्री –
❤️🅰️एक अबोध बालक 🅰️❤️ – अरुण अतृप्त
चाँदनी के शहर में
एक चांद बोना पड् गया
रोशनी तो कम न थी
आकार छोटा पड़ गया
देख कर के मैं अचंभित
इस जगत के खेल न्यारे
धरती मैय्या भी
विस्मृत चमत्कृत
हुइ सब देख देख
व्योम का विस्तार
छोटा पड़ गया
चाँदनी के शहर में
एक चांद बोना पड् गया
रोशनी तो कम न थी
आकार छोटा पड़ गया
दिन दीवाली का अपुरव
जगमग जगमग जगत सारा
इक अकेला चन्द्रमा
बाद्लों ने ढक लिया
चाँदनी के शहर में
एक चांद बोना पड् गया
रोशनी तो कम न थी
आकार छोटा पड़ गया
प्रेम के आयाम थे
साजन भी थे सजनी भी थी
श्रद्धा मगर किसी की किसी में न थी
विश्वास था दर्द से पीड़ित बहुत
एक आह थी बस हर तरफ
चाँदनी के शहर में
एक चांद बोना पड् गया
रोशनी तो कम न थी
आकार छोटा पड़ गया