चाँद खिलौना
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एक रात को छत पर मइया नन्हे राम को गोद लिए,
देख रही थीं बाल चन्द्र को नभ की ओर नयन किए
शरद ऋतु की हल्की हल्की ठण्डक तन को भाती थी,
तभी प्रतिदिन मइया लाला को ले छत पर आती थी
उस दिन लाला बिरज गया, बोला ‘मोहे चाँद खिलौना दे’,
चांदी के हाथी, सोने के घोड़े सारे नीचे फेंक दिए
मइया सोचे, ‘लाला! ये तो दूर बहुत है कैसे दूँ?’,
पर मैं अपने राजकुंवर को रोने भी तो कैसे दूँ!’
तभी मंगाया दासी से एक थाल भरा निर्मल जल से,
ज्यों ही सन्मुख रखा तो उसमें दिखा चन्द्रमा अम्बर से
लाला छप-छप छप-छप रीझा खूब उसे भाया चन्दा,
मइया कौशल्या को अपना राम प्रिय सबसे ज़्यादा
“जड़मति” को चैतन्य जो करदे नमन उसकी लीला को है,
तारक जो शिला को है वो बालक कौशिला को है