Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Jan 2023 · 1 min read

गणतंत्र पर्व

आज है आया अवसर पावन,
आजादी की गाथा गायें।
आहुति बन गए महायज्ञ में
उन वीरों को शीश झुकाएं।

सुखदेव,भगत, बालगंगाधर,
बोष, चन्द्र शेखर आजाद,
इनके बलिदानों के कारण,
देश हमारा है आबाद।

बिस्मिल संग अशफाक खान भी,
भारत माँ का दीवाना था।
निकल पड़ा केशरिया बांधे,
आजादी को पाना था।

जिनके कारण चमन हमारा,
बहु विहगों से चहका है।
अपने लहू से सींचा तो ये
गुलशन अपना महका है।

खुशी मनाए याद रहे पर,
ऋणी देश का तन व मन।
श्रद्धा सुमन समर्पित वीरों,
तुमको शत शत बार नमन।

उनके सर की कीमत पर है,
अपनी वसुधा बनी स्वतन्त्र।
हम भारत के लोग मनाते,
तब आजादी से गणतंत्र |

अगस्त पन्द्रह आजादी दिन,
छब्बीस जनवरी को गणतंत्र।
राष्ट्र पर्व ये सांझा अपना,
राष्ट्र भक्ति है इसका मन्त्र।

सतीश सृजन, लखनऊ.

367 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Satish Srijan
View all

You may also like these posts

प्रणय मधुता
प्रणय मधुता
Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan"
मानव जीवन - संदेश
मानव जीवन - संदेश
Shyam Sundar Subramanian
आज मैंने खुद से मिलाया है खुदको !!
आज मैंने खुद से मिलाया है खुदको !!
Rachana
लड़ रहा सरहद पर कोई भाई,बेटा और पति
लड़ रहा सरहद पर कोई भाई,बेटा और पति
Shweta Soni
मैंने उनको थोड़ी सी खुशी क्या दी...
मैंने उनको थोड़ी सी खुशी क्या दी...
ruby kumari
अरे रामलला दशरथ नंदन
अरे रामलला दशरथ नंदन
Neeraj Mishra " नीर "
मूर्दों का देश
मूर्दों का देश
Shekhar Chandra Mitra
जीना होता आज
जीना होता आज
महेश चन्द्र त्रिपाठी
भेद नहीं ये प्रकृति करती
भेद नहीं ये प्रकृति करती
Buddha Prakash
हमारी प्यारी हिंदी
हमारी प्यारी हिंदी
पूनम दीक्षित
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
पूर्वार्थ
कविता
कविता
Nmita Sharma
जंगल जंगल में भटक, पांडव किये प्रयास।
जंगल जंगल में भटक, पांडव किये प्रयास।
संजय निराला
*जंगल की आग*
*जंगल की आग*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
चंद अशआर
चंद अशआर
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
शीर्षक -गुरू
शीर्षक -गुरू
Sushma Singh
राधे राधे
राधे राधे
ललकार भारद्वाज
वो ज़ख्म जो दिखाई नहीं देते
वो ज़ख्म जो दिखाई नहीं देते
shabina. Naaz
*अध्याय 4*
*अध्याय 4*
Ravi Prakash
विरह रस
विरह रस
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
*प्रेम नगरिया*
*प्रेम नगरिया*
Shashank Mishra
#शुभ_रात्रि-
#शुभ_रात्रि-
*प्रणय प्रभात*
" सजदा "
Dr. Kishan tandon kranti
ग़ज़ल _ सरकार आ गए हैं , सरकार आ गए हैं ,
ग़ज़ल _ सरकार आ गए हैं , सरकार आ गए हैं ,
Neelofar Khan
भोली चिरइया आसमा के आंगन में,
भोली चिरइया आसमा के आंगन में,
पूर्वार्थ देव
सुरभित - मुखरित पर्यावरण
सुरभित - मुखरित पर्यावरण
संजय कुमार संजू
-शेखर सिंह
-शेखर सिंह
शेखर सिंह
खुरदरे हाथ
खुरदरे हाथ
आशा शैली
मैंने कभी न मानी हार (1)
मैंने कभी न मानी हार (1)
Priya Maithil
मेरा भगवान तेरा भगवान
मेरा भगवान तेरा भगवान
Mandar Gangal
Loading...