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20 Jan 2017 · 1 min read

गजल आया हूँ शहर में लेके कुछ किस्से नये पुराने

आया हूँ शहर में किस्से लेकर नये पुराने
परेशां चेहरों के लबों पर लाऊंगा मुस्काने

बख्शा खुदा ने हुनर तो कुछ बेचने आया
खरीद लो मेरे कीमती प्यार भरे अफ़साने

बेचैन मस्जिद सहमे शिवाले पुकार रहे थे
आजा परिंदे कटोरी में रखे तेरे लिये दाने

कहता मैं परिंदा खुदा से ,नराज तुझसे हूँ
पर कतर के तूने मुझे बक्शी कैसी उड़ाने

मैं परिंदा पिंजरे में कब भला पला बड़ा हूँ
मेरी तबाही का रस्ता मेरे यह ठौर ठिकाने

गर्म हवा मन्दिर से तो मस्जिदे है धुँआ धुआं
तू कैसा खुदा मदहोशी में बैठा जाकर मैखाने

देख मेरी आँखें आज नम है तेरे लिए मेरे खुदा
सबके हाथ में पत्थर और अशोक पर है निशाने

अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से

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