क्या ?
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/6c0b1b93ae716cf7da18d6186adc0185_3bfe68e62926626104df573b0a46f3e2_600.jpg)
क्या ?
चला मंजिल पाने को
पर मयखाने पहुंच गया
मेरी किस्मत थी रूठी
मुझे देख जवाना भड़क गया ।
मयखाने का देख नजारा
मै भी वहक गया
मंजिल तो पास थी
पर रास्ता भटक गया ।।
वहाँ की सल्तनत के
जलवे ही थे निराले
पैसों के थे सब अपने
देख इसे मेरा दिल दहक गया ।।।
***दिनेश कुमार गंगवार***