क्या लिखूँ….???
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क्या लिखूँ…???
कुछ समझ न पाऊँ।
शब्द दिख रहे,
खोए-खोए।।
जग में कितनी
पीड़ाऐं हैं..!!
आखिर कोई
कितना रोए…???
मानव ही जब
मानव हृदय की
व्यथा समझ
न पाता है।
शब्द अगर मिल जाऐं भी
अर्थ कहीं खो जाता है।
रचनाकार : कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
वर्ष :- २०१३.