कब तक

अब तेराऔर इंतज़ार कब तक।
दिल को रखूं बेकरार कब तक।
अच्छा लगता है तन्हा रहना
मगर तन्हाई से प्यार कब तक।
जिंदा रहने है तो सांसें चाहिए
सांसों का ये व्यापार कब तक।
बहक गया है मन ,तेरे इश्क़ में
अब ये एख्तियार कब तक।
उलझे रिश्ते,अब सुलझाएं कैसे
सुलझने से होंगे तार तार कब तक।
सुरिंदर कौर