ए’लान – ए – जंग
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दिल पर पत्थर रखने को मजबूर हुआ ,
इंसानियत का ब -हमा-वजूद जब तार-तार हुआ ,
वहशी दरिंदों के हैवानियत की इंतिहा हो गई ,
जब बेबस मज़लूमों की ‘इस्मत सरेआम नीलाम की गई ,
फ़िरका-परस्ती की सियासत में इंसान
किस हद तक गिर सकता है ?
जो अपनी खुदगर्ज़ी के लिए वहशी दरिंदा भी
बन सकता है ,
इंसानियत को बचाने के लिए अब जंग का
ए’लान करना होगा ,
इन दरिंदों की हैवानियत को मिटाकर ही
दम लेना होगा ,
वरना वह दिन दूर नहीं जब इंसानियत
दरिंदों के हाथों कुचली सिसकती रह जाएगी ,
और अपनी हस्ती खोकर गुम होकर रह जाएगी।