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11 Feb 2017 · 1 min read

एक मुठ्ठी भर ख्वाहिश थी तुझे पाने की

एक मुठ्ठी भर ख्वाहिश थी
तुझे पाने की।
अब तो आदत सी हो गयी है
क़िस्मत को भी रूठ जाने की।
अब हर कदम पर क़िस्मत
मुझे आज़माती है।
ना हो नाराज़ मुझसे
मेरी किस्मत भी रूठ जाती है।
तुझे मैं मनाने में दिन रात
एक करता हूँ।
तू ही तो है क़िस्मत मेरी
मैं ये समझता हूँ।
तू मेरी आदत बन गई है
कैसे छूट पायेगी।
अगर तूने अपना लिया तो
मेरी ख्वाहिश पूरी हो जायेगी
मेरी क़िस्मत बदल जायेगी

भूपेंद्र रावत
03/02/2017

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 316 Views

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