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19 Feb 2022 · 1 min read

आहट को पहचान…

आहट को पहचान…
~~°~~°~~°
आहट चुपके से दस्तक दे रही,
फिर भी षड़यंत्र से अंजान हो।
सीखा नहीं कभी इतिहास से,
तुम मुफलिसी के शिकार हो।

चंद झूठे अरमानों की खातिर,
तुने क्या क्या नहीं खोता रहा।
वो खौफनाक बिछौने बिछाता,
तु बेखौफ उसमें सोता रहा ।

पृथक कश्मीर और खालिस्तान के ,
बीज अंकुरित होते अपने हिंदुस्तान में।
नेतों के भेष में भेड़िए छुपे होते यहाँ ,
फिर भी तुम फंसते उनके इन्द्रजाल में ।

शुक्र मनाओ कि, ईमान मुक्कमल है ,
नहीं तो मासूमों के खून से रंगती दीवारें।
तुम फांसी देकर ही क्या कर लोगे ?
आहट को पहचान,चीख कह रही है मीनारें।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /०२/ २०२२
फाल्गुन , कृष्णपक्ष , तृतीया ,शनिवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
Tag: कविता
3 Likes · 2 Comments · 1217 Views
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