आस्तीक भाग -तीन

आस्तीक भाग – तीन
अशोक को सत्रह जून सन् दो हज़ार सोलह का वह मनहूस दिन विपत्तियों के पहाड़ कि तरह टूट पड़ने वाला कैसे भूल सकता है वह ई डी एम् एस सेंटर पर बैठा था प्रचंड गर्मी सड़कों पर जीवन जैसे थम सा गया हो तभी पहली बार सेंटर कि दूरभाषिक वह घण्टी बजी जब फोन को अशोक ने उठाया तब आवाज़ आई अशोक क्या तुम्हे मालूम नहीं है ? महिपाल का एक्सिडेंट हो गया है और कैंट थाने के अंतर्गत पैडलेगंज चौकी के किसी सिपाही द्वारा उन्हें सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया है अशोक भागते दौड़ते सदर अस्पताल पहुँचा जहां आकस्मिक चिकित्सा कक्ष में छोटा भाई महिपाल भर्ती था।।
अशोक को भली भांति मालूम था कि जब भी सेंटर कि लैंड लाईन कि घंटी उसके लिए बजती है तो कुछ अच्छा नहीं अशुभ सूचक ही होती है दूसरी बार विकास निगम द्वारा सेंटर के लैंड लाईन पर फोन किया गया जिसके परिणाम स्वरूप मुझे अन्याय के पराकाष्टा का सामना हुआ जिसे मैंने स्वीकार किया लोगो द्वारा दी गई प्रताड़ना इस सोच के अन्तर्गत थी की मैं विखर जाँऊ सारे प्रायास के पीछे तुक्ष सोच निकृष्ट मानसिकता थी जिसने मुझे रसातल का मार्ग दिखाया आश्चर्य यह कि जिस आदेश द्वारा अशोक का स्थानानतरण आने एवं जाने वाले अधिारियों द्वारा भय के अन्तर्गत किया गया था उस आदेश का सिर्फ अशोक ने ही पालन किया शेष बारह अधिकारियों द्वारा आदेश को धता बता अपने पदो पर कार्य किया जाता रहा यह लचर एवं परम्परागत भयाक्रांत प्रबंधन का सर्वश्रेष्ठ नजरिया एवं उदाहरण था।
अस्पताल का नज़ारा देख अशोक के होश उड़ गए छोटा भाई अनकॉन्सेस था बीच बीच मे कुछ झटके में बोलता जो उसकी नाजुक हालात के परिचालक थे खैर चिकिसालय द्वारा चिकित्सा शुरू थी अशोक को बहुत आश्चर्य आज भी है कि जहाँ से उसके छोटे भाई को सड़क से पुलिस उठा कर लाई थी वहां जब तक किसी हैवी वाहन द्वारा छोटे वाहन को पूरी तरह कुचल ना दे तब तक व्यक्ति मरणासन्न घायल नहीं हो सकता अपने वाहन के असंतुलित होने पर या किसी जानवर या व्यक्ति को बचाने के कारण असंतुलित होकर सड़क पर गिर जाने से इतनी गंभीर चोट नही आ सकती थी जितनी छोटे भाई महिपाल को अाई थी क्योकि सड़क बहुत सपाट एव चिकनी है फिर उसे गभ्भीर चोटे कैसे आ गयी यह आज तक यक्ष प्रश्न है?
अशोक का छोटा भाई उसके लिये बहुत ही महत्वपूर्ण था अशोक उसे लगभग पचास वर्ष कि उम्र में भी नियमित कुछ ना कुछ बोल देता जो कड़ुआ होता मगर जबाब देने की बात तो दूर वह सर भी नही उठाता आज के दौर में भाई भाई के रिश्तो की इससे बढ़िया दूसरी कोई मिशाल नही हो सकती सबसे खास बात यह थी कि दुर्दिनों में दोनों राम लक्ष्मण की तरह एक साथ रहते और हर समस्या चुनौतियों दुश्वारियों का मुकाबला करते।।
हालांकि कुछ गलत संगत छोटे भाई के अवश्य थे मगर वह था तो लक्ष्मण ही उसके दुघर्टना एव पीड़ा ने अशोक को अंतर्मन तक हिला कर रख दिया।।
खैर सिटी स्कैन एंव एक्सरे में यह बात सामने आई की सर में गम्भीर चोटे है और बाया पैर भी फैक्चर है अशोक एव अशोक के परिवार का पहला कर्तव्य था छोटे भाई महीपाल को बचाना उसमें सभी जुट गए परिवार का हर सदस्य जो भी सम्भव था प्रायास गंभीरता पूर्वक कर रहा था।
अठारह जून आनन फानन उंसे गोरखपुर के ही न्यूरो मशहूर डा रणविजय द्विवेदी के यहां ले जाया गया जहाँ भीड़ एव क्रम से मरीज देखने मे बिलम्ब के कारण एव छोटे भाई कि स्थिति अत्यधिक गम्भीर होने के कारण अशोक का बात विवाद हो गया वातावरण तनाव पूर्ण हो गया डॉ बहुत समझदार संयमित संतुलित व्यक्तित्व थे उन्होंने माहौल कटु होने के बाद भी बहुत जिम्मेदारी से छोटे भाई कि चिकित्सा कि और लगभग चार घंटे बाद उनके द्वारा किंग जार्ज मेडिकल कालेज लखनऊ के लिए रेफर सिर्फ इसलिये कर दिया कि बिलम्ब होने के विवाद के कारण अधिक समय अपने यहां रोकना नही चाहते थे ।
दिनाँक अठ्ठारह जून को 3 बजे दिन में एम्बुलेंस से अशोक छोटे भाई को लेकर किंग जार्ज मेडिकल कालेज लखनऊ के लिए रवाना हुआ लगभग पांच घण्टे बाद किंग जार्ज मेडिकल कालेज लखनऊ पहुंचा जहाँ बड़ी मसक्कत के बाद चिकित्सा हेतु दाखिला मिल सका और स्ट्रेचर पर ही चिकित्सको द्वारा चिकित्सा शुरू की गई चिकित्सको के अनुसार दवा कारगर हो रही थी हालत में सुधार हो रहा था लगभग चार दिन कि चिकित्सा के बाद किंग जार्ज मेडिकल कालेज के चिकित्सको द्वारा डिस्चार्ज करने का निर्णय लिया गया दवाएं एव आवश्यक निर्देश देते हुए डिस्चार्ज कर दिया गया यहीं अशोक एवं उसके परिवार से बड़ी चूक हो गयी क्योकि चिकित्सकों को सही स्तिथि का अनुमान नही था यदि था भी तो जिम्मेदारी को अपने पास से हटाना चाहते थे परिवार के सभी लोंगों ने भी परिस्थितियों की गंभीरता को समझने में चूक कर दिया एवं चिकित्सको कि सलाह को स्वीकार करते हुये डिस्चार्ज कराकर गोरखपुर के लिए चल दिये जबकि दुर्घटना के हालात चिल्ला चिल्ला कर पूरे परिवार को हालात कि गंभीरता को समझने को बाध्य कर रहे थे मगर परिवार का कोई सदस्य ध्यान नही दे पा रहा था ।।
दुर्घटना जहाँ हुई थी वहां वाहन फिसलने सिर्फ वाहन का एका एक ब्रेक मारने पर गिरने से इतनी गंभीर चोटें नही आ सकती थी जितनी गंभीर छोटे भाई महिपाल को थी सम्भव नहीं निश्चित ही था किसी बड़े वाहन द्वारा टक्कर मारी गयी हो या सुनियोजीत साजिश के अंतर्गत शातिराना हत्या के नियत का षड्यंत्र अधिक स्पष्ट था फिर भी सामान्य दुर्घटना कि प्राथमिकी तक नही दर्ज हुई लावारिस एवं अशोक के छोटे भाई में सिर्फ अंतर इतना ही था कि उसकी चिकित्सा में कोई कमी नही थी ।।
लखनऊ किंग जार्ज मेडिकल कालेज के चिकित्सकों द्वारा डिस्चार्ज करने पर जो उनकी विवशता थी बेड एव संसाधन सीमित एव मरीज कल्पना से अधिक थी कारण जो भी हो किंग जार्ज मेडिकल कालेज से डिस्चार्ज होने के बाद लखनऊ ही पुनः उसकी चिकित्सा प्राइवेट नर्सिंग होम में करानी चाहिये थी जो नही हुई जो एक भयंकर भूल थी खैर गलती तो गलती है जीवन मे की गई गलतियों को सुधारने का कोई अवसर नही होता है गलती के परिणाम भुगतने होते है यही सच्चाई थी छोटे भाई की दुर्घटना चिकित्सा के हालात कि सच्चाई है।।
खैर उंसे लेकर बाईस जून सोलह को लखनऊ से गोरखपुर रात्रि के लगभग दस बजे पहुंचे तेईस जून सोलह को सब कुछ ठीक था चौबीस जून सोलह को प्रातः ग्यारह बजे जब छोटे भाई को खाना खिलाया गया अचानक खना स्वांस कि नली में फंस गया जिसके कारण उसकी हालत बहुत गंभीर हो गयी पुनः एम्बुलेंस से डॉ रवि राय के रचित नर्सिंग होम ले जाया गया जहां डॉक्टर द्वारा बताया गया कि मरीज कि हालत बहुत ही गम्भीर है वह चिकित्सा करने में असमर्थ है ।।
निराश हताश अशोक छोटे भाई को लेकर किंग जार्ज मेडिकल कालेज लखनऊ के लिए रवाना हुआ हरेया पहुंचते पहुंचते हालत बहुत गंभीर हो गयी जहाँ से जल्दी जल्दी फैज़ाबाद त्वरित चिकित्सा हेतु नर्सिंग होम एव अस्पताल के चक्कर काटने लगे सिविल हस्पताल फैज़ाबाद ने कोई चिकित्सा करने से इनकार कर दिया फिर अनजान शहर में खोजते खोजते एक नर्सिंग होम मिला जहां कोई चिकित्सक नही था मगर वहाँ देख रेख करने वाले चिकित्सक झा जी द्वारा विधिवत चेक करने के बाद मृत घोषित कर दिया गया अब पूरे परिवार में जैसे वज्रपात हो गया पुनः अशोक छोटे भाई के शव को लेकर गोरखपुर लौट आया रात बहुत हो चूकी थी अतः सुबह कि प्रतीक्षा करने लगे सुबह होने पर दाह संस्कार की तैयारी के बाद राज घाट शमशान भूमि पर अंत्येष्टि पूर्ण हुई अन्त्येष्टि से जब अशोक लौट रहा था तब उसे अपने जन्म से भाई के बिछुड़ने तक की सभी घटनाएं यादों के आईने में प्रविम्बित होने लगी।
पूरे कुनबे में एक ही ऐसे व्यक्ति थे जिनके कारण कुनबे की इलाके में प्रतिष्ठा थी क्योंकि वे अपने समय के ख्याति प्राप्त श्रेष्ट विद्वानों में शुमार थे उनका शनिध्य विशेष स्नेह अशोक को प्राप्त था आचार्य हंसः नाथ मणि कोई ऐसा व्यक्ति उनके दौर का सनातन विद्वान नही था पूरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण सम्पूर्ण भारत मे जो उन्हें सम्मान् न देता हो एव उनकी योग्यता का कायल ना हो अशोक के बाबा थे बाबा जब भी खाली रहते उंसे अपने पास बैठा कर अपने ज्ञान एव अनुभवों को बताते एव ज्योतिष धर्म शास्त्रों को बताते यह अशोक का सौभाग्य ही था कि उसे बचपन से ही एक श्रेष्ट योग्य व्यक्तित्व का सानिध्य प्राप्त हो रहा था विशेष कर उन्होंने जीवन के अंतिम दस वर्षों में अशोक के साथ ही बिताए जो अशोक के जीवन के लिये मार्गदर्शक एव दिशा दृष्टि के मार्ग के रूप में सदैव शक्ति प्रेरणा देते रहे।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।