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7 Oct 2016 · 2 min read

हास्य कविता – फूट गयी फूट गयी

एकवार हम बड़े मन से गये बारात ,
लड़की वालों के यहाँ पहुँचने में हो गयी थी रात ।।
लड़की वालों ने हमें देख तुरन्त दी दावत
भूखे लोग ऐसे टूटे जैसे आगयी हो आफत।।
किसी ने सफेद रसगुल्लों में सफेद पत्थर था मिलाया ,
सौभाग्य से वह हमारे हिस्से आया ।।
झट से उसे हमने अपने मुख रक्खा,
परंतु तोड़ने में वो बड़ा था पक्का ।।
वार- वार तोड़ने में हमने बड़ा जोर लगाया ,
बड़ी कोशिश करने पर भी न गया चबाया।।
पत्थर समझ हमने अपने पीछे फेंका ,
और उसे हमने मुडकर तक नहीं देखा ।
इत्तिफाक से वो एक गंजे के सिर से टकराया,
बेचारे गंजे ने एक बड़ा झटका खाया।।
जोर से वह चिल्लाया फूट गयी फूट गयी
हम बोले कि हमसे तो टूटी तक न थी तुमसे फूट गयी ।।
गुस्सा हो उसने भी जोर से उसे मारा ,
एक भूखा बड़े ध्यान से खा रहा था बेचारा ।।
उसने उस पत्थर से मुँह पर बड़ी चोट खायी,
आधा खाना मुख में था आधा वाहर था भाई ।।
सज धज के आया था बन के वह सिकन्दर ,
मुँह उसका सजाकरके बना दिया था बन्दर ।।
ऐसी मारा मारी में छुपने को हमने मेज के नीचे निहारा ,
इतने में किसी ने हमारी आँख में पत्थर दे मारा ।।
हमने चिल्लाकर कहा फूट गयी फूट गयी
एक बोला किसी से टूटी तक न थी तुमसे फूट गयी ।।
अपनी एक आँख पकड़कर हम रो रहे थे भाई ,
ऐसी वारात में हमारी शामत खींच लाई।
है मेरी नशीहत भइया कबहुं न जइयो वारात,
बिना दोष के कभी न खइयो थप्पड़ घूँसा लात ।।
डाँ0 तेज़ स्वरूप भारद्वाज

Language: Hindi
2 Comments · 1504 Views
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