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19 Apr 2017 · 1 min read

गज़ल :– नासूर यूँ चुभते रहे ॥

गज़ल :– नासूर यूँ चुभते रहे ॥

नासूर यूँ चुभते रहे ।
क्यों बेवजह झुकते रहे ॥

लुटती रही है चाँदनी,
हम चाँद को तकते रहे ॥

खिलते रहे गुल बाग में ,
हम जाम से खुलते रहे ॥

छिपते रहे वो चाँद से ,
हम रात से ढलते रहे ॥

अनुज तिवारी “इंदवार”

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