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5 Oct 2016 · 1 min read

मकानों के जंगल

धराशायी होते जा रहे हैं वृक्ष,
उग रहे हैं मकानों के जंगल,
उजड़ रहे प्राकृतिक आवास,
मानव मानव का कर रहा ह्रास,
पशु आ रहे मानव बस्ती में,
मानव है अपनी ही मस्ती में,
बेमौसम बरस रहा है जल,
उग रहे है मकानों के जंगल |

धुआँ धुआँ हो रहा वातावरण,
हवा में बस चुके है धूल के कण,
थोड़ा चलना साँसे फुला रहा है
मानव अस्तित्व डगमगा रहा है
हमारी नींव हो रही है खोखली,
विकास की आँधी ऐसी चली,
पर्यावरण हर पल रहा है बदल
उग रहे हैं मकानों के जंगल ।

धराशायी होते जा रहे हैं वृक्ष
उग रहे हैं मकानों के जंगल ।

” सन्दीप कुमार “

Language: Hindi
768 Views
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