भ्रष्टाचार की जड़
भ्रष्टाचार की जड़….।
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मुझे अब तक नहीं मिला
भ्रष्टाचार की जड़…
ऐसा नहीं हैं कि मैंने ढूंढा नहीं
उन तमाम जगहों पर गया
जहाँ हमें अंदेशा था
मैं मंत्रालय गया
सचिवालय गया
तजुर्बा किया उन तमाम लोगों से
थानेदार से लेकर हवलदार
मंत्री से लेकर संत्री तक
मैं गया छोटे बड़े कार्यालय में
मै गया छोटों से लेकर
युवाओं तक के विद्यालय में
खेल का मैदान देखा
बनिए की दुकान देखा
हर जगह भ्रष्टाचार तो मिला
किन्तु सम्पूर्ण पेड़ बना हुआ
अपने बद्बुदार फलों से लदा हुआ
हृदय ने कहाँ अब ईश्वर हीं मालिक है
चलो उसी के घर चलते है
यह समस्या वहीं सुलझायेगा
अतः उसी से कहते है
देर ना किया निकल पड़ा
नंगे पाव, अपने ईश के द्वार
अरे ये क्या
यहाँ तो लम्बी लाईन लगी है
मांगने वालों की भीड़ खड़ी है
मै भी इस लम्बी लाईन का अंग होगया
कुछ दूर ही चला और तंग होगया
सोचा कुछ जुगाड़ भीड़ाता हूँ
सबसे पहले मैं ही अंदर जाता हूं
लाईन से निकल
मैं मंदिर के मुख्य द्वार आया
सिक्योरिटी को पास बुलाया
और पचास का पत्ता थमाया
तभी दिमाग की बत्ती जली
लगा जैसे भगवन ने हमसे फरमाया
तुने कहाँ -कहाँ नहीं चक्कर काटे
खुद को कितना सताया
फिर भी नहीं समझ पाया
ये जो तूने पचास का पत्ता दिया
यही वो जड़ है
जिसे तूं ढूंढ न पाया
इसीलिये तो तुझे मैने अपने द्वार बुलाया।।
…….पं.संजीव शुक्ल “सचिन”……