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25 Feb 2017 · 1 min read

प्रकृति

बादलों की गरजती ध्वनि में,बरसा की छमछम सुहानी लगती है ।
अमावस्या की काली रात में,जो जुगनू दीवानी लगती है।

माना पलक झपकते बदलते,मंजर प्रकृति के पल पल।
पूनम की रात में निकलो तो,हर राह पहचानी लगती है।

ताल में पंक की अजब,कहानी का क्या कहना दोस्तों।
आंचल में उसके पंकजो की लड़ी सुहानी लगती है।

अब डालियों से हरियाली,धीरे धीरे जुदा हो रही है।
इसलिए मौसम की बहारों में भी,कुछ बेमानी लगती है।

उदित सूर्य की लालिमा में,चिड़िया चहचहाती मधुर स्वर में।
प्रकृति के सुंदर नजारे की,वह आज भी रानी लगती है।

धिक्कार निज स्वार्थों को मानव तेरे,जो प्रकृति की गोद में खेलता प्रशांत।
समझले वक्त रहते नहीं तो,अब ए दुनिया उलझी कहानी लगती है।

प्रशांत शर्मा “सरल”
नरसिंहपुर
मोबाइल 9009594797

Language: Hindi
641 Views
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