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8 Jun 2017 · 1 min read

गजल

आँखो में ख्याबो को सजाती है चाहत
सदा गिरते हुओं को उठती है चाहत

मुमकिन नामुमकिन कुछ नही जानती
सपनो को हक़ीक़त बनाती है चाहत

मरकर भी ये दिलो में जिंदा रहती है
पूरी होने को पुनर्जन्म लेती है चाहत

होनी अनहोनी से इसे कुछ भी नही है
पतझड़ में बसंती फूल खिलाती है चाहत

अमीरी गरीबी की सभी बंदिशे मिटा
धरती को अम्बर से मिलाती है चाहत

दर्द उदासी खामोशी के माहौल में
खुलकर मुस्कुराना सिखाती है चाहत

भले ही अंधी तूफ़ान या सागर हो
पार करने का हौसला देती है चाहत

मुफ़लिसी के दौर में ‘ऋषभ’मायूस न हो
उम्मीदो के चिराग जलाती है चाहत

रचनाकर -ऋषभ तोमर

1 Like · 322 Views
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