विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ Language: Hindi 109 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 3 विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 7 Jan 2018 · 1 min read मां ममता की मूरत है मां ममता की मूरत है सबकी एक जरूरत है। अपने सुख की परवाह नहीं बच्चों का शुभ मुहूर्त है। कोख में पाला नौ महीने दर्द सहा था नौ महीने। बच्चे... Hindi · कविता 298 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 6 Jan 2018 · 1 min read प्रीत के धागे नाजुक हैं मैं हारा तुम जीते, क्या फर्क पड़ता है छोटी-छोटी बातों से, रिश्ता टूट बिखरता है। तुम जीत पर इतरा लो, मैं हार का जश्न मना लूंगा तेरे अधरों से मैं... Hindi · मुक्तक 439 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 6 Jan 2018 · 1 min read हम यूं ही इतराते थे हम यूं ही इतराते थे हम बिन कह रह जाते थे वो नयनों से तीर चलाते थे। घायल, चोटिल दिल हो जाता वो मरहम तक ना लगात थे। जुल्फों को... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 345 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read नव वर्ष अभिनंदन कुहरे की रजत चादर ओढे अलसाया सा आया मार्गशीर्ष, ठिठुरन, कंपन और शीतलहर संग समेटे लाया मार्गशीर्ष। चुप्पी साधे और अकुलाते दादुर, मयूर, पपीहा, कोकिल की मधुरी वाणी भी सुनती... Hindi · कविता 390 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read आई बैशाखी की रेल झिलमिल करती कनक बालियाँ दिनकर की तपिश किरणों से, शबनमीं समीर में सरपट दौड़ी आई बैशाखी की रेल । हलधर खेतों को कूच कर रहे लेकर दतिया और बैलों की... Hindi · कविता 542 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read बेटी बचाओ, बेटी पढाओ शबनम की बूंदों का दर्पण स्नेह की निर्मल धारा-सी। घर के आंगन की फुलवारी बेटी भोर का तारा-सी। अपना भाग्य लिखवा कर आती सुख-दुख का एक सहारा-सी। दो-दो कुलों को... Hindi · कविता 316 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read वह घूम रही उपवन-उपवन पुष्पों सी नजाकत अधरों पर नवनीत-सा कोमल उर थामे। एक पाती प्रेम भरी लेकर वह घूम रही उपवन-उपवन। सुर्ख कपोलों पर स्याह लटें धानी आंचल का कर स्पर्श। छूने को... Hindi · कविता 465 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read बेटी सर्दी की छुट्टियों में बेटी जब अपने चाचा के घर चली गई। माँ की यादों ने उसको घेरा एक पल भी ना वो वहां रही। माँ के साये में पल-पल... Hindi · कविता 280 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 5 Jan 2018 · 1 min read अभिव्यक्ति अभिव्यक्ति को किसी की कौन दबा पाया है। यह वो ज्वालामुखी है जिससे विपक्ष भी थर्राया है। अंतस के उद्गारों को कवि साधता है पल-प्रतिपल अपने शब्दों की ताकत से... Hindi · कविता 640 Share Previous Page 3