Smriti Singh Tag: कविता 27 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Smriti Singh 28 Jul 2022 · 1 min read हम पस्त हैं सूर्य पहरेदारी में व्यस्त हैं, शहर में जुगनूओं की गश्त है, तेल फैला हुआ, बाती मरोड़ी हुई, खोजते हुए, रोशनी को ,देखा! चांद तारों के साथ मस्त है Hindi · कविता 3 2 174 Share Smriti Singh 28 Jan 2022 · 1 min read स्तम्भकार जिनको करने सवाल थे , वो तो चाटुकार थे , नौकरी हत्थे चढ़ी है, चाकरी के भर्तीयों में चर्चे बहुत हैं, धान्धली के, सिलसिले वार क्या लिखें, पन्ने बचे हैं... Hindi · कविता 2 7 241 Share Smriti Singh 11 Jan 2022 · 1 min read धुँआ - राख डरी आंख नहीं थी, डरी शक्ल थी धुंआ बहुत था पर आग नहीं थी, सुबह न जाने किसकी, राख बहुत थी, हम डरने के अभ्यस्त थे, माहौल था, पर डरने... Hindi · कविता 3 4 484 Share Smriti Singh 3 Jan 2022 · 1 min read स्पर्धा आगे बढ़ने को आतुर हैं, दो पक्ष यहां स्पर्धा में छूट गया इनका, लक्ष्य यहां द्वंद नही,न द्वेष था, बस केवल आवेश था, अनन्त परिधि में रहने वाले, इक बिंदु... Hindi · कविता 2 6 245 Share Smriti Singh 22 Oct 2021 · 1 min read नारी -नीर 'कुछ लोग' कहते हैं, हम औरतें पानी की तरह रहें, आयतन कुछ भी हो, पर हर आकार में ढ़ले, कोई पत्थर भी मारे, तो भी लहरायें, सारे रंग मे रंग... Hindi · कविता 1 5 419 Share Smriti Singh 22 Oct 2021 · 1 min read सड़क पर ढेला पार्दरशी टेप है, सब के होठ पर, माथे पर सिकुड़न, जहनी निराशा मुंह छुहारे सा, आंखे भौचकी खोने लायक, कुछ नहीं पाने की कपट कल्पना का भी सुकून नहीं ,... Hindi · कविता 4 6 263 Share Smriti Singh 8 Sep 2021 · 1 min read चक्र लोग चढ़ रहे हैं, लोग उतर रहे हैं कोई रुक नहीं रहा है, न देखने के लिए, न सोचने के लिए कुछ जो रुकते भी हैं, उनको चढ़ाने वाले चढ़ा... Hindi · कविता 1 1 264 Share Smriti Singh 4 Jun 2021 · 1 min read मेरा मैं कितनी पैरवी करूं खुद की, हर बार खुद की गलतियों से तिरछा हो कर निकल जाता हूँ, खामियाें पर कभी रेशम, कभी बेलबेट चढ़ता हूं, दलील ,आध बुने स्वैटर में... Hindi · कविता 2 1 307 Share Smriti Singh 28 May 2021 · 1 min read प्रश्नवाचक चिन्ह ? जब तक ये प्रश्नवाचक चिन्ह (?) है तब तक, मै हूँ| मेरे होने का सबूत है , वरना मैं रहूंगा संसार में , पर इक रिक्तस्थान की तरह जिसकी जो... Hindi · कविता 3 2 400 Share Smriti Singh 21 May 2021 · 1 min read साफ-सुथरा धोखा इक धोखा, जिसमें 'खा' नहीं है सिर्फ 'धो' है, जिसमें सत्ता वही है पर खुद को लोकतंत्र से धो रहा है, इक धोखा, जिसमें 'धो' नहीं है सिर्फ 'खा' है,... Hindi · कविता 1 4 309 Share Smriti Singh 17 May 2021 · 1 min read निष्ठुर झकझोरते हालात हैं, उठते देखता हूँ, बगल से अपने लाश मैं, सिसकियों को न दे सका कोई आस मैं, निष्ठुरता से लिप्त, बना हूं खोखला बांस मैं, ढोंगी सा जी... Hindi · कविता 1 2 306 Share Smriti Singh 16 May 2021 · 1 min read उम्मीद की बरसात दरार पड़े मैदान, सख्त -खुरदुरे चट्टान वो सुखा हुआ आदमी घूरता है आसमान बादल, बूंद, बरसात से कोस दूर पड़ा रेगिस्तान सावन में लहरा कर बारिस, भादव में रिमझिम -रिमझिम... “बरसात” – काव्य प्रतियोगिता · कविता 5 7 364 Share Smriti Singh 17 Sep 2020 · 1 min read है कौन सरकार तो बढ़ी, सयानी हुक्मरान की चल रही, लन्तरानी अब झण्ड नहीं, जिंदगानी सबका बन्टाधार हुआ है, जवान-जहीर हूं, पर ढ़ो रहा हूँ, अपनी जवानी खुराफात तो हुई है, पर... Hindi · कविता 2 1 511 Share Smriti Singh 14 Sep 2020 · 1 min read मै भी हूँ कोई झकझोरो, हिलाओं-डुलाओ, अटक गया है कैमरा, कोई हमें भी दिखाओ माना मै इश्तहार नहीं ,स्टार नहीं बेरोजगार हूं ,बेकार नहीं बेबाक तो मैं भी हूं, सरकार से भिड़ा भी... Hindi · कविता 4 6 540 Share Smriti Singh 2 Sep 2020 · 1 min read सहज हूँ मैं सहज हूँ, हर बात में सहज हूँ नोच लो, खरोच लो, चीर दो घसीट लो, दबोच लो, ढकेल दो या उठाने फेंक दो, वासना की हद तक, तुम मेरा... Hindi · कविता 3 1 287 Share Smriti Singh 27 Aug 2020 · 1 min read बेढ़प किनारे रख ,समझदारी कुछ अन्ट-सन्ट सा लिखते हैं भाड़ में जाये दुनिया -दारी चलो कुछ अगड़म-बगड़म सा करते हैं फरमानों की तौहीन और रिवायत की धज्जियां उड़ते हैं अपने इतमीनान... Hindi · कविता 1 585 Share Smriti Singh 9 Aug 2020 · 1 min read अवैध अवैध हूँ, बहिष्कृत, तिरस्कृत, नाम, उपनाम विहिन संसार का कर्क रोग हूँ| अबोध-सा, पर मै अवैध हूँ, न मैने चुना, न मैने कहा, फिर भी मै हूँ, जो भी मै... Hindi · कविता 5 6 372 Share Smriti Singh 31 Jul 2020 · 1 min read "प्रेमचन्द" कथा सम्राट बीस वर्ष की दरिद्रता की कहन, शर्म भी न कर सकूँ, मैं वहन घीसू, माधव तृप्त हुए, खा कर, बुधिया का 'कफ़न' सद्गति ने दिखलाया है, दलित एकता का गठन... Hindi · कविता 6 6 373 Share Smriti Singh 29 Jul 2020 · 1 min read दो दिन की छुट्टी मुँह फाड़ कर बैठी महामारी तलवार बनाऊँ द्विधारी बकरा चिल्लाये अल्लाह -राम, और वो चिल्लाये राम-राम, हमको प्यारी कुर्बानी, मैं तो ईंटा रख कर मानूं हाँ! दो दिन की छुट्टी... Hindi · कविता 8 8 481 Share Smriti Singh 28 Jul 2020 · 1 min read # हैशटैग मेरे कर्म में औकात कहाँ, जो मुझे बयां कर सके मेरा वो चोंगा लाओ, जो मुझे दिखा सके आखिर हूं, कौन? वो बता सके हैशटैग की स्पर्धा में, मैं भी... Hindi · कविता 3 4 315 Share Smriti Singh 17 Jul 2020 · 1 min read अहम का वहम मैं ही मैं हूँ शून्य भी मै, अनन्त भी मैं मेरे लिए ही सब कुछ है बस मै ही सजीव -सा बाकी सब निर्जीव-सा मैं ही भूमण्डल का अधिकारी सब... Hindi · कविता 7 6 527 Share Smriti Singh 12 Jul 2020 · 1 min read झुनझुना झुनझुना सा लोकतंत्र जितनी मर्जी, जैसी मर्जी वैसे ठोक कर बजाओ यह सामूहिक हास्य है, हंसता भी मै , हंसा भी मुझ पर जा रहा है, मूक दर्शक सा निहारता... Hindi · कविता 7 9 359 Share Smriti Singh 10 Jul 2020 · 1 min read अचेतना से चेतना तक हृदय के निलय- आलिंद को मंद पड़ने न दो चिंघाड़ती, दहाड़ती आवाज न सही पर बोलती हुई जिह्वा को रुकने न दो मार्मिक दृश्य हैं, दशा दुर्दशा है, इक टांग... Hindi · कविता 9 6 726 Share Smriti Singh 8 Jul 2020 · 1 min read शरीफों का मुहल्ला ये शरीफों का मुहल्ला है, सिसकियां तेज हो तो कानों में रूई भर लो दखल न दो, वो पति-पत्नी का मामला है ये शरीफों का मुहल्ला है, गलियां भट रही... Hindi · कविता 6 5 315 Share Smriti Singh 5 Jul 2020 · 1 min read पड़ा हुआ हूँ छित्त -विछित्त मैं पड़ा हुआ हूँ अपने घर से लाओ चाकू थाली चीर -चीर ले जाओ, चमड़ी मांस नहीं है, इसमें लात मारकर जाओ न महक रहा रक्त मेरा, और... Hindi · कविता 5 4 492 Share Smriti Singh 5 Jul 2020 · 1 min read सर्वस मैं ही जन्म से मरण तक आरम्भ से अन्त तक मैं निमित्त मात्र हूँ कलंक हूं गर्व हूं सरल हूं प्रचण्ड हूं अणु हूं विकराल हूं तुम्हारे अधीन हूं जैसे सहज हो... Hindi · कविता 5 2 337 Share Smriti Singh 3 Jul 2020 · 1 min read दंगाई कपड़ा हुकूमत फरमान सुनाती, दंगाई कपड़े से पहचाने जायेगें | कपड़ा परेशान है बैठा यार, न मेरा कोई धर्म, न मेरी कोई जाति, बस, कुछ है मेरा रंग, कुछ है मेरा... Hindi · कविता 3 2 378 Share