कवि रमेशराज Tag: लेख 161 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid कवि रमेशराज 4 Mar 2017 · 6 min read आचार्य शुक्ल की कविता सम्बन्धी मान्यताएं ‘‘जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान-दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिये मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान... Hindi · लेख 3 1 7k Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 1 min read ‘ विरोधरस ‘---8. || आलम्बन के अनुभाव || +रमेशराज विरोधरस के आलम्बनों के कायिक अनुभाव ---- ------------------------------------------------------------ विरोध-रस के आलंबन बनने वाले अहंकारी, व्यभिचारी, अत्याचारी, ठग, धूर्त्त, शोषक और मक्कार लोग होते हैं जो कभी चैन से नहीं बैठते।... Hindi · लेख 1 235 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 7 min read इक्कीसवीं सदी की कविता में रस +रमेशराज हिन्दी कविता के नवें दशक का यदि परम्परागत तरीके से रसात्मक विवेचन करें तो कई ऐसी अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है कि जिनके रहते रस की परम्परागत कसौटी... Hindi · लेख 1 1 476 Share कवि रमेशराज 4 Mar 2017 · 8 min read डॉ. नामवर सिंह की आलोचना के प्रपंच डॉ .नामवर सिंह अपनी पुस्तक ‘कविता के नये प्रतिमान’ में लिखते हैं कि-‘‘जागरूक समीक्षक शब्द के इर्दगिर्द बनने वाले समस्त अर्थवृत्तों तक फैल जाने का विश्वासी है। वह संदर्भ के... Hindi · लेख 1 572 Share कवि रमेशराज 6 Mar 2017 · 5 min read विचार और रस [ एक ] काव्य के संदर्भ में ‘रस’ शब्द का अर्थ-मधुरता, शीतल पदार्थ, मिठास आदि के साथ-साथ एक अलौकिक आनंद प्रदान करने वाली सामग्री के रूप में लिया जाता रहा है। विचारने का... Hindi · लेख 1 1 472 Share कवि रमेशराज 6 Mar 2017 · 7 min read विचार और रस [ दो ] रसाचार्यों द्वारा गिनाए विभिन्न प्रकार के रसों का रसात्मकबोध अंततः इस तथ्य पर आधारित है कि इन रसों की आलंबन सामग्री किस प्रकार की है और वह आश्रयों को किस... Hindi · लेख 1 1 588 Share कवि रमेशराज 6 Mar 2017 · 4 min read विचार, संस्कार और रस [ दो ] काव्य के रसतत्त्वों एवं उनके रसात्मकबोध को तय करने वाली समस्त प्रक्रिया का निर्माण कवि के संस्कारों द्वारा ही संपन्न होता है। संस्कारों के विभिन्न रूपों [ धार्मिक, सामाजिक, मानवतावादी,... Hindi · लेख 621 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 2 min read ‘ विरोधरस ‘---22. || विरोध के प्रकार || +रमेशराज 1-स्व-विरोध- ------------------------- कभी-कभी आदमी भूलवश या अन्जाने में ऐसी गलतियां कर बैठता है जिनके कारण वह अपने को ही धिक्कारने लगता है- उसको ही सुकरात बताया, ये क्या मैंने कर... Hindi · लेख 704 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 4 min read ‘ विरोधरस ‘---21. || ‘विरोध’ के रूप || +रमेशराज 1.अभिधात्मक विरोध- ---------------------------- बिना किसी लाग-लपेट के सपाट तरीके से विरोध के स्वरों को भाषा के माध्यम से व्यक्त करना इस श्रेणी के अन्तर्गत आता है। यथा- नाम धर्म का... Hindi · लेख 300 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 2 min read ‘ विरोधरस ‘---20. || ‘विरोध-रस’ के रूप व प्रकार || +रमेशराज आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंध् ‘काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था’ नामक निबन्ध में कहते हैं - ‘‘लोक में फैली दुःख की छाया को हटाने में ब्रह्म की आनंद-कला जो शक्तिमय... Hindi · लेख 392 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 5 min read ‘ विरोधरस ‘---19. || विरोधरस के अनुभाव || +रमेशराज 1. व्यंग्यात्मक प्रहार- ----------------------------- आक्रोशित आश्रय व्यंग्य के माध्यम से गम्भीर और मर्म पर चोट करने वाली बातें बड़ी ही सहजता से कह जाते हैं। व्यंग्य तीर जैसे घाव देने... Hindi · लेख 321 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 1 min read ‘ विरोधरस ‘---18. || विरोध-रस की पूर्ण परिपक्व रसात्मक अवस्था || +रमेशराज स्थायी भाव आक्रोश जागृत होने के बाद आश्रय में घनीभूत होने वाले ‘विरोध-रस’ से सिक्त अपमानित-प्रताडि़त-दमित-उत्कोचित और पीडि़त व्यक्ति की रस-दशा कैसी और किस प्रकार की होती है, उसे आश्रय... Hindi · लेख 421 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 3 min read ‘ विरोधरस ‘---17. || तेवरी में विरोध-रस || +रमेशराज साहित्य चूंकि समाज का दर्पण होता है अतः जो विरोध हमें सड़कों-कार्यालयों-परिवार आदि में दिखायी देता है, वही काव्य में सृजन का कारण बनता है। काव्य के रूप में काव्य... Hindi · लेख 210 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 2 min read ‘ विरोधरस ‘---16 || विरोध-रस की निष्पत्ति और पहचान || +रमेशराज तिरस्कार-अपमान-शोषण-यातना-उत्कोचन आदि से उत्पन्न असंतोष, संताप, बेचैनी, तनाव, क्षोभ, विषाद, द्वंद्व आदि के वे क्षण जिनमें अत्याचार और अनीति का शिकार मानव मानसिक रूप से व्यग्र और आक्रामक होता है,... Hindi · लेख 352 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 4 min read ‘ विरोधरस ‘---15. || विरोधरस की पहचान || +रमेशराज विरोध-रस का स्थायी भाव ‘आक्रोश’ है। रसों के आदि आचार्यों ने जो रसों के कई स्थायी भाव गिनाये हैं उनमें से कई स्थायी भाव विरोध-रस को परिपक्व अवस्था में पहुंचाने... Hindi · लेख 396 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 4 min read ‘ विरोधरस ‘---14. || विरोधरस का स्थायीभाव---'आक्रोश' || +रमेशराज विरोध-रस को परिपक्व अवस्था तक पहुंचाने वाला स्थायी भाव ‘आक्रोश’ अनाचार और अनीति के कारण जागृत होता है। इसकी पहचान इस प्रकार की जा सकती है- जब शोषित, दलित, उत्पीडि़त... Hindi · लेख 468 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 3 min read ‘ विरोधरस ‘---13. || विरोध-रस के आश्रयों के अनुभाव || +रमेशराज हिंदी काव्य की नूतन विधा तेवरी के पात्र जिनमें विरोध-रस की निष्पत्ति होती है, ऐसे पात्र हैं, जो इसके आलंबनों के दमन, उत्पीड़न के तरह-तरह से शिकार हैं। एक तरफ... Hindi · लेख 450 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 5 min read ‘ विरोधरस ‘---12. || विरोध-रस के आश्रयगत संचारी भाव || +रमेशराज विरोध-रस के आश्रय अर्थात् जिनमें रस की निष्पत्ति होती है, समाज के वे दबे-कुचले-सताये-कमजोर और असहाय लोग होते हैं जो यथार्थवादी काव्य या उसके एक रूप तेवरी के सृजन का... Hindi · लेख 310 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 4 min read ‘ विरोधरस ‘---11. || विरोध-रस का आलंबनगत संचारी भाव || +रमेशराज विरोध की रस-प्रक्रिया को समझने के लिये आवश्यक यह है कि सर्वप्रथम आलंबन के उन भावों को समझा जाये जो आश्रय के मन में रसोद्बोधन का आधार बनते हैं। विरोध-रस... Hindi · लेख 420 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 1 min read ‘ विरोधरस ‘---10. || विरोधरस के सात्विक अनुभाव || +रमेशराज भाव-दशा में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले कायिक परिवर्तन ‘सात्विक अनुभाव’ कहलाते हैं। किसी भी सुन्दर स्त्री या अबला को देखकर उसे पाने या दबोचने के लिए दुष्टजनों की... Hindi · लेख 288 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 2 min read ‘ विरोधरस ‘---9. || विरोधरस के आलम्बनों के वाचिक अनुभाव || +रमेशराज अत्याचारी, दुराचारी व्यक्ति विष के घड़े, कुत्सित इरादों से लैस, छल और अहंकार से भरे होते हैं। उनकी कटूक्तियों व गर्वोक्तियों का उद्देश्य दूसरे के मर्म को चोट पहुंचाना, अपमानित... Hindi · लेख 273 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 3 min read ‘ विरोधरस ‘---7. || विरोधरस के अनुभाव || +रमेशराज मन के स्तर पर जागृत हुए भाव का शरीर के स्तर पर प्रगटीकरण अनुभाव कहलाता है। भाव मनुष्य की आंतरिक दशा के द्योतक हैं, जबकि अनुभाव वाह्य दशा के। अतः... Hindi · लेख 226 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 4 min read ‘ विरोधरस ‘---6. || विरोधरस के उद्दीपन विभाव || +रमेशराज आलंबन विभाव की चेष्टाएं, स्वभावगत हरकतें, उसकी शरीरिक संरचना, कार्य करने के तरीके आदि के साथ-साथ वहां का आसपास का वातावरण आदि ‘उद्दीपन विभाव’ के अंतर्गत आते हैं। इस संदर्भ... Hindi · लेख 221 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 1 min read ‘ विरोधरस ‘---5. तेवरी में विरोधरस -- रमेशराज ----------------------------------------------------- कवि के रूप में एक तेवरीकार के लिये ऐसा सारा वातावरण मक्कारी, छल, फरेब, ठगई से बनता है, जो खुशियों के बजाय दुःख को जनता है। तेवरीकार ऐसे वातावरण... Hindi · लेख 456 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 2 min read ‘ विरोधरस ‘---4. ‘विरोध-रस’ के अन्य आलम्बन- +रमेशराज ‘विरोध-रस’ स्थायी भाव ‘आक्रोश’ से उत्पन्न होता है और इसी स्थायी भाव आक्रोश को उद्दीप्त करने वाले कारकों में सूदखोर में, भ्रष्ट नौकरशाह, भ्रष्ट पुलिस, नेता, साम्प्रदायिक तत्वों के अतिरिक्त... Hindi · लेख 396 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 9 min read ‘ विरोधरस ‘---3. || विरोध-रस के आलंबन विभाव || +रमेशराज तेवरी में विरोध-रस के आलंबन विभाव के रूप में इसकी पहचान इस प्रकार की जा सकती है- सूदखोर- ---------- लौकिक जगत के सीधे-सच्चे, असहाय और निर्बल प्राणियों का आर्थिक शोषण... Hindi · लेख 1 275 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 2 min read ‘ विरोधरस ‘---2. [ काव्य की नूतन विधा तेवरी में विरोधरस ] +रमेशराज काव्य की नूतन विधा ‘तेवरी’ दलित, शोषित, पीडि़त, अपमानित, प्रताडि़त, बलत्कृत, आहत, उत्कोचित, असहाय, निर्बल और निरुपाय मानव की उन सारी मनः स्थितियों की अभिव्यक्ति है जो क्षोभ, तिलमिलाहट, बौखलाहट,... Hindi · लेख 200 Share कवि रमेशराज 24 Oct 2016 · 5 min read ‘ विरोधरस ‘ [ शोध-प्रबन्ध ] विचारप्रधान कविता का रसात्मक समाधान +लेखक - रमेशराज ‘ विरोधरस ‘---1. ‘ विरोधरस ‘ [ शोध-प्रबन्ध ] विचारप्रधान कविता का रसात्मक समाधान +लेखक - रमेशराज ---------------------------------------------------- ‘ विरोधरस ‘ : रस-परम्परा एक नये रस की खोज समाज में... Hindi · लेख 342 Share कवि रमेशराज 3 Nov 2016 · 6 min read लोककवि रामचरन गुप्त एक देशभक्त कवि - डॉ. रवीन्द्र भ्रमर अलीगढ़ के ‘एसी’ गांव में सन् 1924 ई. में जन्मे लोककवि रामचरन गुप्त ने अपनी एक रचना में यह कामना की है कि उन्हें देशभक्त कवि के रूप में मान्यता... Hindi · लेख 545 Share कवि रमेशराज 3 Nov 2016 · 3 min read लोककवि रामचरन गुप्त का लोक-काव्य +डॉ. वेदप्रकाश ‘अमिताभ ’ लोककवि रामचरन गुप्त की रचनाओं को पढकर यह तथ्य बार-बार कौंधता है कि जन-जन की चित्त-शक्तियों का जितना स्पष्ट और अनायास प्रतिबिम्बन लोक साहित्य में होता है, इतना शिष्ट कहे... Hindi · लेख 459 Share कवि रमेशराज 3 Nov 2016 · 2 min read दया के सागरः लोककवि रामचरन गुप्त +रमेशराज लोककवि रामचरन गुप्त का मन कविता के स्तर पर ही संवेदनशील नहीं रहा, बल्कि जिन स्त्रोतों से वे कविता के लिये संवेदना ग्रहण करते थे, उन सामाजिक स्त्रोतों की अस“यता,... Hindi · लेख 231 Share कवि रमेशराज 3 Nov 2016 · 9 min read संघर्षों की एक कथाः लोककवि रामचरन गुप्त +इंजीनियर अशोक कुमार गुप्त [ पुत्र ] लोककवि रामचरन गुप्त 23 दिसम्बर 1994 को हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनका चेतन रूप उनके सम्पर्क में आये उन सैकड़ों जेहनों को आलोकित किये है, जो इस मायावी, स्वार्थी... Hindi · लेख 460 Share कवि रमेशराज 3 Nov 2016 · 3 min read मेरे बाबूजी लोककवि रामचरन गुप्त +डॉ. सुरेश त्रस्त आठवें दशक के प्रारम्भ के दिनों को मैं कभी नहीं भूल सकता। चिकित्सा क्षेत्रा से जुड़े होने के कारण उन्हीं दिनों मुझे दर्शन लाभ प्राप्त हुआ था स्वर्गीय रामचरन गुप्त... Hindi · लेख 261 Share कवि रमेशराज 3 Nov 2016 · 3 min read लोककवि रामचरन गुप्त मनस्वी साहित्यकार +डॉ. अभिनेष शर्मा स्व. रामचरन गुप्त माटी के कवि थे। अपने आस-पास बिखरे साहित्य को अपने शब्दों का जामा पहनाकर लोकधुन से उसका शृंगार कर जिस तरह से वक्त की इमारतों में सहेजते... Hindi · लेख 219 Share कवि रमेशराज 3 Nov 2016 · 2 min read लोककवि रामचरन गुप्त के लोकगीतों में आनुप्रासिक सौंदर्य +ज्ञानेन्द्र साज़ ‘जर्जरकती’ मासिक के जनवरी-1997 अंक में प्रकाशित लोककवि स्व. रामचरन गुप्त की रचनाएं युगबोध की जीवन्त रचनाएं हैं। हर लोककवि की कविता में आमजन लोकभाषा में बोलता है। ये कविताएं... Hindi · लेख 326 Share कवि रमेशराज 3 Nov 2016 · 3 min read ब्रज के एक सशक्त हस्ताक्षर लोककवि रामचरन गुप्त +प्रोफेसर अशोक द्विवेदी हमारे देश में हजारों ऐसे लोककवि हैं, जो सच्चे अर्थों में जनता की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे न केवल स्वयं, बल्कि अपनी रचनाओं के साथ गुमनामी के अंधेरे... Hindi · लेख 425 Share कवि रमेशराज 16 Feb 2017 · 27 min read तेवरी इसलिए तेवरी है [आलेख ] +रमेशराज तेवरी एक ऐसी विधा है जिसमें जन-सापेक्ष सत्योन्मुखी संवेदना अपने ओजस स्वरूप में प्रकट होती है। तेवरी का समस्त चिन्तन-मनन उस रागात्मकता की रक्षार्थ प्रयुक्त होता है, जो अपने सहज-सरल... Hindi · लेख 1k Share कवि रमेशराज 16 Feb 2017 · 5 min read हिन्दी ग़ज़़लकारों की अंधी रति + रमेशराज ग़ज़ल विशेषांकों की कड़ी में अपनी भी एक कड़ी जोड़ते हुए संपादक श्री श्याम अंकुर ने ‘सौगात’ का अप्रैल-2009 अंक ‘ग़ज़ल-विशेषांक’ के रूप में निकाला। अन्य ग़ज़ल विशेषांकों की तरह... Hindi · लेख 180 Share कवि रमेशराज 16 Feb 2017 · 17 min read हिन्दी ग़ज़ल के कथ्य का सत्य +रमेशराज हिन्दी में ग़ज़लकारों की एक पूरी की पूरी जमात इस बात का पूरे जोर-शोर के साथ प्रचार कर रही है कि अब ग़ज़ल किसी सुहागरात की न तो चूडि़यों की... Hindi · लेख 750 Share कवि रमेशराज 16 Feb 2017 · 17 min read हिन्दीग़ज़ल में कितनी ग़ज़ल? -रमेशराज हिन्दी में ग़ज़ल अपने विशुद्ध शास्त्रीय सरोकारों के साथ कही या लिखी जाए, इस बात पर किसे आपत्ति हो सकती है। ग़ज़ल का ग़ज़लपन यदि उसके सृजन में परिलक्षित नहीं... Hindi · लेख 615 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 8 min read तेवरीः तेवरी है, ग़ज़ल नहीं +रमेशराज तेवरी, कोरे रूप सौन्दर्य, व्यक्तिगत प्रेमालाप, थोथी कल्पनाशीलता, सामाजिक पलायनवादी दृष्टि से विमुख एक निश्चित अंत्यानुप्रासिक व्यवस्था से युक्त वह विधा है जिसमें मानवतावादी चिन्तन की सत्योन्मुखी संवेदनशीलता, शोषित के... Hindi · लेख 263 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 7 min read तेवरीः शिल्प-गत विशेषताएं +रमेशराज जब हम किसी कविता के शिल्प पर चर्चा करते हैं तो शिल्प से आशय होता है-उस कविता के प्रस्तुत करने का ढंग अर्थात प्रस्तुतीकरण। प्रस्तुत करने की यह प्रक्रिया उस... Hindi · लेख 600 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 5 min read विरोध-रस की काव्य-कृति ‘वक्त के तेवर’ +रमेशराज स्थायी भाव ‘आक्रोश’ से युक्त ‘विरोध-रस’ का उद्बोधन कराने वाली सुप्रसिद्ध तेवरीकार ज्ञानेन्द्रसाज की कृति ‘वक्त के तेवर’ चुनी हुई 64 तेवरियों का ऐसा संग्रह है जिसका रसास्वादन पाठकों में... Hindi · लेख 559 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 8 min read व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज डॉ. शंकर पुणतांबेकर से मेरी भेंट बरेली लघुकथा सम्मेलन में हुई। लघुकथाकारों के बीच मुझे डॉ. शंकर पुणतांबेकर काफी सुलझे हुए विचारों वाले चिन्तक लगे। ‘वर्तमान साहित्य में रस’ पर... Hindi · लेख 247 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 10 min read यथार्थवादी कविता के रस-तत्त्व +रमेशराज काव्य के रसात्मक-विवेचन को लेकर आदि आचार्य भरतमुनि ने काव्य के लिये, जिस भाव-सत्ता को रस-निष्पत्ति के सूत्र में पिरोया था, वह भाव-सत्ता, रस-तत्त्वों के रूप में [ रति, शोक,हास,... Hindi · लेख 601 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 5 min read तेवरी में करुणा का बीज-रूप +रमेशराज तेवरी अन्त्यानुप्रासिक व्यवस्था से बंधी एक ऐसी कविता है, जिसमें सत्योन्मुखी संवेदनशीलता की रागात्मकता अन्तर्निहित है। तेवरी की यह रागात्मक चेतना, एक तरफ जहां शोषित, पीड़ित, दलित वर्ग की भूख,... Hindi · लेख 254 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 7 min read तेवरी में रागात्मक विस्तार +रमेशराज काव्य की आत्मा वह रागात्मक चेतना है, जिसके द्वारा मानव रति या विरति के रूप में, अपने मानसिक एवं शारीरिक सम्बन्धों की प्रस्तुति विभिन्न प्रकार के माध्यमों और विधियों से... Hindi · लेख 470 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 8 min read तेवरी का सौन्दर्य-बोध +रमेशराज लोक या जगत के साथ हमारे रागात्मक सम्बन्ध, हमारी उस वैचारिक प्रक्रिया के परिणाम होते हैं, जिसके अन्तर्गत हम यह निर्णय लेते हैं कि अमुक वस्तु वा प्राणी अच्छा या... Hindi · लेख 236 Share कवि रमेशराज 19 Feb 2017 · 8 min read तेवरी का आस्वादन +रमेशराज ‘‘काव्य वह रमणीय एवं सार्थक शब्द-रचना है, जिसमें पाठक, श्रोता अथवा दर्शक के मन को रमाने की शक्ति हो। ऐसी रचना रस-भाव युक्त हो सकती है, अलंकार-युक्त हो सकती है,... Hindi · लेख 450 Share कवि रमेशराज 21 Feb 2017 · 7 min read क्षमा करें तुफैलजी! + रमेशराज तुफैलजी हास्य-व्यंग्य के साथ-साथ ग़ज़ल की उत्तम नहीं ‘सर्वोत्तम पत्रिका’ ‘लफ्ऱज़’ निकालते हैं। जाहिर है पत्रिका में प्रकाशित ग़ज़लें उत्तम नहीं, सर्वोत्तम’ होंगी। ग़ज़ल-संग्रहों की आलोचना भी सर्वोत्तम ही होगी।... Hindi · लेख 283 Share Page 1 Next