Dr MusafiR BaithA Tag: कविता 260 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 2 Next Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read घृणा के बारे में घृणा उगने उगाने के लिए सबसे उर्वर भूमि है धर्म धर्म में पड़कर एक आदमी दूसरे धर्म के आदमी से इतना अलग हो जाता है भंगुर व्यवहार हो जाता है... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 29 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read ओबीसी साहित्य है सूत न कपास मगर लट्ठम लट्ठा और चोट लगे पहाड़ से फोड़े घर की सिलौट को इल्जाम पिछड़े लट्ठभांजों का कि सवर्ण साहित्य और दलित साहित्य दोनों ने ही... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 31 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read नमक–संतुलन दोस्त होते हैं हमारी जरूरत ज्यों थाली में नमक भोजन में नमक सा जीवन में संतुलन बन जाए तो स्वाद की गति स्वाभाविक हो जाए जीवन की नमक की कमी... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 35 Share Dr MusafiR BaithA 1 May 2024 · 1 min read यथार्थ का सीना (2013 की जम्मू और कश्मीर की प्राकृतिक आपदा से प्रेरित) विगलित मिथ का यथार्थ करते हो मिथ की दुर्गंध जीवन की कथा में फेंटते हो यार हद भद्दा मजाक करते... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 2 37 Share Dr MusafiR BaithA 1 May 2024 · 1 min read नींद नींद आती है न आती है कम आती है पूरी आती है विशृंखल आती है जाती है न जाती है शरीर करता है नींद की हर दशा दिशा को संचालित... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 45 Share Dr MusafiR BaithA 24 Apr 2024 · 1 min read मौतों से उपजी मौत वह था इतना अकिंचन क्षुधा आकुल कि काफी हद तक मर गई थीं भूख की वेदनाएं उसकी और अन्न से ज्यादा भूख से ही अचाहा अपनापा हो गया था उसका... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 3 89 Share Dr MusafiR BaithA 24 Apr 2024 · 1 min read सुख का मुकाबला उस अमीर का सुख मुझे बहुत विपन्न दिखा और उस गरीब का सुख बहुत सम्पन्न एक चेहरे पर सुख गर्व सजा मग़र सूजा दिखा था जबकि दूजा मुख मुझे दुख... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 2 57 Share Dr MusafiR BaithA 24 Apr 2024 · 1 min read उसका दुःख मेरी प्रतिक्रिया पाकर उसे भारी दुःख पहुँचा था इस बार वह मेरी प्रतिक्रियाओं में सुख को पाने पालने का अभ्यासी था पेड़ से गिर बिना खजूर पर अटके धरती को... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 1 54 Share Dr MusafiR BaithA 23 Apr 2024 · 2 min read बचपन की बारिश बचपन की बारिश में यादों का दखल अब भी जीवन में बचा बसा है इतना कि भींग जाता है जब तब उसकी गुदगुदी से सारा तनमन मेरे समय के नंग... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 73 Share Dr MusafiR BaithA 23 Apr 2024 · 1 min read नए पुराने रूटीन के याचक नए साल के पहले दिन लोगों का नया रूटीन है धर्मस्थलों पर जुटे हैं वे अपने कर्तव्य अकर्तव्य अपने आराध्यों को सौंपकर अगले तीन सौ पैंसठ दिन के कील कांटे... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 2 50 Share Dr MusafiR BaithA 22 Apr 2024 · 2 min read मां का अछोर आँचल मां की जननी नजरों में कभी वयस्क बुद्धि नहीं होता बेटा मां के प्यार में इतनी ठहरी बौनी रह जाती है बेटे की उम्र कि अपने साठसाला पुत्र को भी... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 72 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 2 min read माँ की आँखों में पिता पिता से टूट चुका था तभी सदा के लिये मेरा दुनियावी नाता जबकि अपने छहसाला पुत्र की उम्र में मैं रहा होऊंगा जब अब तो पिता के चेहरे का एक... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 1 56 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 2 min read माँ का अबोला याद नहीं कि माँ ने कभी अबोला किया हो मुझसे मुझसे भी यह न हुआ कभी बस एक अबोला माँ ने किया अपने जीवन की अंतिम घड़ी में और फोन... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 56 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 1 min read सामान्यजन सामान्यजन की एक पहचान है मेरे पास यदि हम अनचटके में बदल लें अपना घर बार ठौर ठिकाना फोन नम्बर आदि तो उन्हें ढूंढ़ना पड़ता है हमें हमारा घर हमारा... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 54 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 1 min read प्रियजन प्रियजन से इतना अतल तलछटहीन होता है हमारा राग कि आपस में हर व्यापार का मान समलाभ ही आता है इस व्यापार की हर चीज की तौल दिल की पासंगहीन... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 41 Share Dr MusafiR BaithA 21 Apr 2024 · 2 min read बिटिया की जन्मकथा जबकि जिस साल मेरी नई-नई नौकरी लगी थी उसी साल नौकरी बाद आई थी मेरे घर पहली मनचाही संतान भी यानी दो-दो ख़ुशियाँ अमूमन इकट्ठे ही मेरे हाथ लगी थीं... "संवेदना" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 74 Share Dr MusafiR BaithA 6 Apr 2024 · 1 min read घंटीमार हरिजन–हृदय दलित / मुसाफ़िर बैठा जुम्मा जुम्मा आठ दिन भए किरानी से साहब बन बौराया एक सरकारी दफ़्तर का वह हरिजन–हृदय दलित कमरे में बेल लगवा कर और उसे बजा बजा कर बाहर बैठाए गए... Hindi · कविता 101 Share Dr MusafiR BaithA 4 Apr 2024 · 1 min read प्रेमागमन / मुसाफ़िर बैठा पटना में जिस शहर में मैं रहता हूं लाखों लोग रहते हैं वह मीलों चलकर दिनों बाद केवल मुझसे मिलने केवल आया है। Hindi · कविता 60 Share Dr MusafiR BaithA 4 Apr 2024 · 1 min read आदमी और धर्म / मुसाफ़िर बैठा आदमी का उगाया धर्म ज्यों ज्यों बेडौल बढ़ता गया आदमी का अपना कद त्यों त्यों घटता गया धर्म आदमी का मस्तिष्क हर कर बढ़ता है और आदमी है कि धर्म... Hindi · कविता 83 Share Dr MusafiR BaithA 22 Mar 2024 · 1 min read हरी उम्र की हार / मुसाफ़िर बैठा एक हरा पत्ता जो जबरन या जानबूझकर या धोखे से झाड़ दिया गया स्वाभाविकता खोकर अकाल कवलित हो झड़ने की उम्र जैसे नाहक ही पा गया पत्ते के पीले पड़ने... Hindi · कविता 48 Share Dr MusafiR BaithA 20 Mar 2024 · 1 min read पिता की छवि इस धरती पर न जाने कितने बीते पिताओं की कितनी कितनी छवियाँ शेष होंगी गिनती के बाहर होंगी अनगिन होंगी स्थिर छवियाँ होंगी वीडियो में सवाक और चलायमान छवियाँ होंगी... Hindi · कविता 55 Share Dr MusafiR BaithA 20 Mar 2024 · 1 min read खोज सत्य की आरंभिक मनुष्य का आई क्यू काफ़ी कमज़ोर रहा होगा तभी तो उसने प्राकृतिक सत्य की थाह में अलौकिक असत्य सत्य अनेक गढ़ लिए आंधी तूफान, सर्दी गर्मी, धूप छांव, सूखा... "सत्य की खोज" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 3 84 Share Dr MusafiR BaithA 19 Mar 2024 · 1 min read शब्द और दबाव / मुसाफ़िर बैठा मौसम की नमी से मरते नहीं हैं शब्द बल्कि दब जाते हैं दबे रहने पर भी जान बची रह सकती है दबे की जिजीविषा मायने रखती है। Hindi · कविता 131 Share Dr MusafiR BaithA 19 Mar 2024 · 1 min read हरे की हार / मुसाफ़िर बैठा एक हरा पत्ता जो जानबूझकर या धोखे से झाड़ दिया गया झड़े और उम्र पा पीले पड़े पत्ते की गति पाकर अपनी उम्र ना–हक़ असमय ही हार गया। Hindi · कविता 75 Share Dr MusafiR BaithA 19 Mar 2024 · 1 min read खरोंच / मुसाफ़िर बैठा जात भात अलगाकर सदियों से अपना चूल्हा उचका अलग ऊंचा जलाकर वर्णवाद से मुटाए सवर्ण सुई और उसके जनेऊ धागे के बीच दबे हुए हैं दलित हालांकि दलित खुद करघा... Hindi · कविता 1 93 Share Dr MusafiR BaithA 18 Mar 2024 · 1 min read नित्यता सत्य की जीवन अगरचे नित्य सत्य है तो मरण भी अटल अकाट्य सत्य है आँखिन देखी को साखी लो लो अनुभव को प्रमाण तो जीवन मरण के सच से परे धर्म की... "सत्य की खोज" – काव्य प्रतियोगिता · कविता 121 Share Dr MusafiR BaithA 18 Mar 2024 · 1 min read सच की मिर्ची सच है कि राम कृष्ण झूठ है देवी देवता झूठ है अल्ला ईश्वर झूठ है झूठ की खेती है धार्मिक विश्वास सगरे इसके नाम पर मानवी आडंबर सारे, व्यर्थ के... "सत्य की खोज" – काव्य प्रतियोगिता · कविता · काव्य प्रतियोगिता · सत्य की खोज 3 105 Share Dr MusafiR BaithA 25 Feb 2024 · 1 min read पूछती है कविता पूछती है मेरी यह कविता कि गोमूत पीने की भारतीय सनातनता हद से हद किस काल तक पीछे जाती है? पीछे जाती भी है कि आधुनिक काल में जन्म पाकर... Hindi · कविता 130 Share Dr MusafiR BaithA 25 Feb 2024 · 1 min read *चाचा–भतीजा* / मुसाफ़िर बैठा व्यवस्था उसकी जेब में डेलीगेटेड पड़ी है राजा का वह हमजोली मुंहबोला भतीजा है तीसरे दर्जे का सरकारी नौकर है यह भतीजा मगर दूसरे–पहले दर्जे के अफसर उसको सैल्यूट दागते... Hindi · कविता 80 Share Dr MusafiR BaithA 15 Feb 2024 · 1 min read पूजा का भक्त–गणित / मुसाफ़िर बैठा आज पूजित कल विसर्जित लक्ष्मी, काली, दुर्गा, सरस्वती देखा देवियो! भक्त तुम्हारे मतलबी मानुष दूध की मक्खी माना करते उपयोगिता के गणित पर कस अपने जीवन से फेंक निकाला करते... Hindi · कविता 132 Share Dr MusafiR BaithA 14 Feb 2024 · 1 min read वेलेंटाइन / मुसाफ़िर बैठा आंबेडकरी–विचारधारा ही मेरी सर्वप्रिय मानसिक खुराक और जीवनसींचक वेलेंटाइन है। Hindi · कविता 183 Share Dr MusafiR BaithA 2 Feb 2024 · 1 min read सवर्ण, अवर्ण और बसंत वर्णों की इस भारतीय बेमेल दुनिया में कोई सवर्ण है तो कोई अवर्ण सवर्ण यदि बसंत है तो अवर्ण उससे छत्तीस के रिश्ते पर धकेला गया पतझड़ ऋतुओं में तो... Hindi · कविता 71 Share Dr MusafiR BaithA 1 Feb 2024 · 1 min read मुहावरे में बुरी औरत खुद को जभी आप मुहावरे में बुरी औरत कहती हैं बाय डिफॉल्ट स्वयं को इस खांचाबद्ध जाति और संप्रदाय आधारित समाज व्यवस्था में मुट्ठीभर अच्छी औरतों में गिनते हुए गर्व... Hindi · कविता 58 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी- 28 दैवी शक्ति कल्पित है जैसे वैसे ही यक्ष यक्षिणी भी है कल्पनारोपित नग्न देह यक्षिणी की पता नहीं किस जमाने में कला को प्राप्त हुई पूजी अब भी जा रही... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 147 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी- 27 यक्ष की देह को कला न पूछे क्यों न पूछे यक्षिणी देह को कला है पूजै जोर बरजोर हिसाब से बेसी क्यों पूजै है? Poetry Writing Challenge-2 · कविता 76 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी- 26 जमाना इंटरनेट से रोबोटी डॉल तक सेक्स सामग्री ले आ चुका इंटरनेट जहां उभय लिंग का सहचर है डॉल वहीं अभी महज पुरुषों के काम ही आता यक्ष के अक्ष... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 91 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी- 25 जी जिस समाज में पत्थर भी देवता है पत्थर के लिंग और भग भी देवता प्रतिनिधि समझे जाएं समझकर पूजे जाएं जहां वहां स्तन अक्ष ढूंढ़ रमे मर्द लोग तो... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 98 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-24 खुदाई में एक मूर्ति मिली मूर्ति जनानी सी बताया पारखी लोगों ने जनानी मनुष्य नहीं मनुष्येतर प्राणी वह यक्ष कोटि की देह उसकी स्त्री की देह सहज नहीं सजीली बल्कि... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 64 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी- 23 अजब कि कल वे आएंगे कमर कस कर आएंगे नया अजायबघर जाएंगे यक्षिणी के कमरे के पास जाएंगे यक्षिणी को अपनी लिप्त आंखों में कैद कर अभौतिक श्रद्धा सुमन चढ़ाएंगे... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 112 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी- 22 निबरा की घरवाली गांवभर के मर्दों की भौजाई होती है तुम्हारे रूप रस गंध से चिपके उस कवि और तुम्हारे वक्ष-अक्ष पर टिके कवि गिरोह के लोगों की मार्फ़त भी... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 131 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी- 21 वे बातें कर रहे हैं यक्षिणी की मगर ब्याज में पान कर रहे हैं वे मिथक के मियां की तरह पानी डूब के यक्षिणी के रूप-यौवन का गले में कांटा... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 117 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-20 यक्षिणी सवर्णघिचोरों के पल्ले पड़ गयी हो तुम सवर्णनिचोड़ हो रही है तेरी तुम्हें हिन्दू मिथक कथा की अपनी पात्र द्रौपदी बनाकर वे सब दुशासनों की तरह तुम्हें उघाड़ने में... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 65 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-19 द्विज मर्द योजित प्रगतिशील यक्षिणी-चर्चा में शिरकत किया करती हैं सवर्ण घर की अंगनाएँ भी समझ रहे हैं न गणित स्त्री मर्दन का कितना योजित हो सकता है हो सकता... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 49 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-18 जीवन और फिल्मों में कम यक्षिणी-बदन नहीं मिलती सवर्ण अंगनाएँ मगर मूर्तियां में ये मिलतीं कहां क्यों नहीं मिलतीं बताएँ यक्षिणी-ग्राही कलाकार उन्नत नग्न वक्ष के प्रगतिशील खरीदार! Poetry Writing Challenge-2 · कविता 90 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-17 कूची कलाकार की बेतरह केवल कुच पर फिरी कला सिरफिरी हरक़त हद की गिरी। Poetry Writing Challenge-2 · कविता 43 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-16 कवि सरेराह सजाई जिस्म में रखी तूने तेरी प्रशंसा प्राप्त यक्षिणी की जगह तो पुराख्याल तू! पुरख्याल हो बता तेरे अपने घर में पैसी छवि कैसी है यक्षिणी की पत्नीरूपा... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 69 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-15 तबीयत झोंक कर यक्षिणी को देना आकर बताता है यह यौन लिप्सा की कलाकारी है चुनांचे यह खुला खेल फर्रूखाबादी है। Poetry Writing Challenge-2 · कविता 47 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-14 खुलना जब सोच समझकर आता है तो समझो खोलना कलाकारी नहीं तिज़ारत बन जाता है! Poetry Writing Challenge-2 · कविता 101 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-13 एक यक्षिणी के वक्ष तेरे द्वारा खोले जाने से हट जाते हैं वस्त्र वक्ष से हर काल की हरेक युवा स्त्री के! Poetry Writing Challenge-2 · कविता 66 Share Dr MusafiR BaithA 31 Jan 2024 · 1 min read यक्षिणी-12 यक्षिणी यक्षिणी खेलते रहो खोलते रहो ख़लिश अपनी ऐ खलकामी प्रगतिशील! Poetry Writing Challenge-2 · कविता 83 Share Previous Page 2 Next