Mohit Negi Muntazir 25 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read बसन्त | गढ़वाली गीत | मोहित नेगी मुंतज़िर मेरा गों की सार एगे बसन्त ग्वीराल फूली, खिलगिन फ्यूंली मैं छों यखुली, गेल्या न भूली भौंरो द्या रैबार ऐगे बसन्त। भौंरा भमाणा, गीत लगाणा फूल सरमाणा,मुक्क लुकाणा भौंरो की... Hindi · गीत 471 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read बसंत की पछ्याणं | गढ़वाली घनाक्षरी | मोहित नेगी मुंतज़िर बसंत बहार आयी, डालूं मा मौलयार आयी घोग्या देवता कु बनयु नयु नयु थान च । फ्यूंली जडया बुरांश,आड़ू पहियाँ का फूलों खोजणा कु सारयूं सारयूं ,जांणी छोरों घाण चा... Hindi · कविता 587 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read सभी जाणा देहरादून | गढ़वाली घनाक्षरी | मोहित नेगी मुंतज़िर सभी जाणा देहरादून,गौं मा औणा बस जून अभी पलायन कु यू ,नयूँ नयूँ दौर चा। बांजु पडयू घोर बार , चोक दंडयाली तिबार वख एक कमरा कु किराया कु घोर... Hindi · कविता 387 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read गढ़वाली मुक्तक -2 | मोहित नेगी मुंतज़िर वबरा बैठी बनोंदि छे वा, लाखडूं मा दिनो खाणु सब तें देंदि छे एकि नाप, अपणु हो या क्वी बिराणु। कभी खलोन्दी छे हरि उमी, कभी उखड़ी बूखणु घाण जब... Hindi · मुक्तक 415 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read गढ़वाली मुक्तक-1 | मोहित नेगी मुंतज़िर हमारी अपणी आण साण, हमारा पुराणा लोकगीत तिल्ले दाणी बांटी खाणु, ये च हमारी लोकरीत। सब्यूँ दगड़ी भाईचारू,बिराणु भी ह्वे जांदू हमारू ये पहाड़े हवा खेकि, दुश्मन बणि जांदू मीत।... Hindi · मुक्तक 395 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read गढ़वाली दोहे -3 | मोहित नेगी मुंतज़िर भारत का बाज़ार मा, कनू "मुंतज़िर "शोर क्विइ त तुम पछ्यानी लया, नेताओं मा चोर। लोकतंत्र कु खेल भी, बडू ही रोचक होंद राजा सेन्दू राजभवन, परजा बैठी रोंद। बढ़दु... Hindi · दोहा 413 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read गढ़वाली दोहे-2 | मोहित नेगी मुंतज़िर डांडा धारूँ मां खिलयां, फ्यूंली बुराँसा फूल पड़ना डालूं डालूं मा, यख बासंती झूल। चेते की संग्रन्द ऐ , अर फूलदेई त्योहार शैरी धरती फैली गी, मौलयरो रैबार। अपणा विराणा... Hindi · दोहा 344 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read गढ़वाली दोहे -1 | मोहित नेगी मुंतज़िर चूणु कुडू धार कू ,बांजा पडयू घराट गौ कु बाटू देखणु , दगड़िया तेरी बाट। पुन्गडी पाटली सूख गिन ,खाली पड्यां गुठयार फेडयू मां कांडा जमयां ,सड़गिन द्वार तिवार। उत्तराखंड... Hindi · दोहा 261 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read मनखी दिख़्ये पर मनख्यात नी छै | गढ़वाली कविता | मोहित नेगी मुंतज़िर मनखी दिख़्ये पर मनख्यात नी छै पुराणा गढ़वळि वा जात नी छै गौं गोलूं मां क्वा का त अबी भी छा पर पैल्या मनखी वाली स्या बात नी छै दयखण... Hindi · कविता 374 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read बंठाधार | गढ़वाली कविता | मोहित नेगी मुंतज़िर इज्जत आईं धार मां अर बंठा बजार मां चार कूड़ा लैंदा होयां एक द्वी हज़ार मां कुंडू की धरपली मां बांदरु का अंडा दिन्या बिरालूं अर मुसूं का किराया पर... Hindi · कविता 383 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read सुनो संगी चमन वीरों | कविता | मोहित नेगी मुंतज़िर सुनो संगी चमन वीरों तुम्हारा सत्य हो सपना हौसला दिल में उम्मीदें निगाहें लक्ष्य पर रखना। जो है संकल्प करता तू अटल स्वलक्ष्य पाने को रगो में जोश इतना भर... Hindi · कविता 274 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read दोहे-2 | मोहित नेगी मुंतज़िर सड़क बनेगी गांव तक, ख़्वाब संजोये लोग मगर बजट तो चढ़ गया , अभियंता को भोग । इस पर है फ़ाइल अभी , उस पर हैं अधिकार पांच बरस कब... Hindi · कविता 209 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read दोहे-1 | मोहित नेगी मुंतज़िर नेता जी परदेश में , बीच किनारे सोय। जनता अपने भाग्य पे,बैठी बैठी रोय। शरद महीने में लगे, बड़ी सुहानी धूप । दोपहरी में जेठ की , देखो असली रूप।... Hindi · दोहा 194 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read होली दोहे | मोहित नेगी मुंतज़िर शरद गया है बीत अब , खिली बसंत बहार जीवन मे लाया खुशी , रंगों का त्योहार। फूटी कोंपल पेड़ पर,रंग बिरंगे फूल बागों मे डलने लगे ,अब बासंती झूल।... Hindi · दोहा 391 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read परम पुनीता इस धरा पर | कविता | मोहित नेगी मुंतज़िर परम पुनीता इस धरा पर देवसरिता बह रही है छलछलाती तट पे जाती देववाणी कह रही है। युगों- युगों से देव गंधर्व, यक्ष, मानव वास करते सत्य की वाणी को... Hindi · कविता 346 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read हाइकु -5 | मोहित नेगी मुंतज़िर चाय का प्याला थकान को पी जाता जादूगर आला। किसका डर आंखें रोती रहती जीवन भर। आओगे कब ये जीवन की बेला ढलेगी जब। चल दिखाऊँ असली जीवन से तुझे... Hindi · हाइकु 1 224 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read हाइकु -4 | मोहित नेगी मुंतज़िर मां का आँचल बहती सरिता का शीतल जल। रक्षाबंधन प्यार के धागों पर आया जीवन। अपना घर सपना गरीब का आंखों पर। स्वागत तेरा हिमवंत देश में गॉंव है मेरा।... Hindi · हाइकु 1 481 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read हाइकु -3 | मोहित नेगी मुंतज़िर चिड़िया बोली देवों ने सूरज की खिड़की खोली। गंगा का जल तेरा है प्रियतम मन निश्छल। क़ैदी जीवन समाज से है बंधा ताज़ा योवन। आँख का तारा ले गया वृद्धाश्रम... Hindi · हाइकु 1 222 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read हाइकु -2 | मोहित नेगी मुंतज़िर रोते हो अब काश। पकड पाते जाता समय। अँधेरा हुआ ढल गई है शाम यौवन की। रात मिलेगा प्रियतम मुझको चांद जलेगा। आ जाओ तुम एक दूजे मैं मिल हो... Hindi · हाइकु 1 203 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read हाइकु -१ | मोहित नेगी मुंतज़िर बेपरवाह है फिरता दर दर रमता जोगी। चलते जाओ यही तो है जीवन नदिया बोली जनता से ही करता है सिस्टम आंखमिचोली। घूमो जाकर किसी ठेठ गांव में भारत ढूँढ़ो।... Hindi · हाइकु 1 396 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए | ग़ज़ल | मोहित नेगी मुंतज़िर जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए वो हमें बेवफ़ा कह गए। ख़्वाब वो मिलके देखे हुए आंसुओं में सभी बह गए। तुम न आये नज़र दूर तक राह हम देखते... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 204 Share Mohit Negi Muntazir 11 Apr 2020 · 1 min read भाग्य विधाता लोकतंत्र के कविता / मोहित नेगी मुंतज़िर कितनी ही मेहनत करके दो जून रोटियां पाते हैं भाग्य विधाता लोकतंत्र के सड़कों पर रात बिताते हैं। अफ़सोस नहीं हो रहा उन्हें जो कद्दावर बन बैठे इन्हीं के पोषित... Hindi · कविता 1 434 Share Mohit Negi Muntazir 6 Jul 2018 · 1 min read ये तो मिलते रहते हैं - मोहित नेगी मुंतज़िर धन और दौलत नाम और शोहरत ये तो मिलते रहते हैं जीने के अंदाज़ तरीके ये तो मिलते रहते हैं। इतनी बस दरख़्वास्त हमारी आप हमारे घर आओ मंचों पे... Hindi · कविता 378 Share Mohit Negi Muntazir 6 Jul 2018 · 1 min read बूढ़ी सांसें (कविता) - मोहित नेगी मुंतज़िर बूढ़ी सांसें चल रही थीं सहारे लाठी के मैं हथप्रभ था झुका हुआ था शर्म से और सोचता था काश! मैं कुछ कर पता... मगर अफ़सोस! इंसानियत की हुई हार...... Hindi · कविता 1 1 452 Share Mohit Negi Muntazir 6 Jul 2018 · 1 min read तुझको जीवन से जाने न दूंगा कभी | मोहित नेगी मुंतज़िर तुझको जीवन से जाने न दूंगा कभी हाथ फैला न ख़ैरात लूंगा कभी। मेरी हसरत है ऊंचाई दूंगा तुझे ज़ीस्त में कुछ अगर कर सकूँगा कभी। हम ज़बां पा के... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 237 Share