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11 Apr 2020 · 1 min read

गढ़वाली दोहे -3 | मोहित नेगी मुंतज़िर

भारत का बाज़ार मा, कनू “मुंतज़िर “शोर
क्विइ त तुम पछ्यानी लया, नेताओं मा चोर।

लोकतंत्र कु खेल भी, बडू ही रोचक होंद
राजा सेन्दू राजभवन, परजा बैठी रोंद।

बढ़दु जांदू देश मा, केवल भरस्टाचार
लोकतंत्र की सेज़ मा, हिन्द पडयू बीमार।

दगड़ियूँ सुणी ल्या आज तुम, उत्तराखंड का हाल
जनता रोणी भाग तै, नेता मालामाल।

धारा मगरा सुखी की, बन्नगीन सब इत्तिहास
फ्रीज़ का ठंडा पानी सी, बुझाय ली अपणी प्यास।

Language: Hindi
408 Views
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