Tag: ग़ज़ल
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सच कहता हूं मैंने मेले देखे हैं।
Kumar Kalhans
बेहयाई हया का नया नाम है।
Kumar Kalhans
मान लें।
Kumar Kalhans
कोई शौक नहीं मेरी ज़रूरत है शायरी।
Kumar Kalhans
खूब इस दुनियां में हमने है तमाशा देखा।
Kumar Kalhans
बेरुखी के पल टहलते जर्द हर अहसास है।
Kumar Kalhans
सुंकू वह चीज है हर पल जिसे हम पा नहीं सकते।
Kumar Kalhans
आकर नहीं जाते हैं ये मेहमान कसम से।
Kumar Kalhans
तेरी गुस्ताख निगाहों में हया देखी है।
Kumar Kalhans
तासीर है मेरी अच्छा भी हूं बुरा हूं।
Kumar Kalhans
हो जाओ होशियार फिर मक्कार आ गए।
Kumar Kalhans
कितनी बेचैनी है कितनी बेकरारी देखिए।
Kumar Kalhans
कैसे परहेजगार होते हैं।
Kumar Kalhans
मैं जब भी चाहूंगा आज़ाद हो जाऊंगा ये सच है।
Kumar Kalhans
पुर शाम की तन्हाइयां जीने नहीं देती।
Kumar Kalhans
मुद्दा सुलझे रार मचाए बैठे हो।
Kumar Kalhans
सबकी आंखों में एक डर देखा।
Kumar Kalhans
गर तू गैरों का मुंह ताकेगा।
Kumar Kalhans
कैसे एतबार करें।
Kumar Kalhans
सबकी आंखों में एक डर देखा।
Kumar Kalhans
छिप न पाती तेरी ऐयारी है।
Kumar Kalhans
हवस का सूरज।
Kumar Kalhans
बस यूं ही कुछ हो गया था।
Kumar Kalhans
कलम ठहर न जाए देखो।
Kumar Kalhans
जब मेरी नज़र से देखोगे तब मेरी दहर को समझोगे।
Kumar Kalhans
जोर जवानी चुटकी में।
Kumar Kalhans
राह चलने से ही कटती है चला करते हैं।
Kumar Kalhans