मुक्तक
चलाना ज़ोर फूलों पर बहुत आसान है साहिब
मैं डाली ख़ार वाली हूँ मुझे पकड़ो नफ़ासत से,
परिंदा शाम को फिर से क़फ़स में लौट आया है
न जाने कौन सा रिश्ता निभाता है हिरासत से।
चलाना ज़ोर फूलों पर बहुत आसान है साहिब
मैं डाली ख़ार वाली हूँ मुझे पकड़ो नफ़ासत से,
परिंदा शाम को फिर से क़फ़स में लौट आया है
न जाने कौन सा रिश्ता निभाता है हिरासत से।