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4 Sep 2018 · 1 min read

आस्तीन के साँप

धुआँ उठा हैं, सुलग रहा कुछ
छुपे हुए अंगारों से ।
वर्षा फिर से मेहरबान है
वामांगी गद्दारों से ।

हवा देखिये मेघ देखकर
उन्हें उड़ाने को निकली ।
नहीं चाहती भांड़ा फूटे
पुन: करे गलती पिछली ।

राष्ट्र का दुर्भाग्य पूँछता
तुष्टीकरण मिटेगा कब ।
पहले मुस्लिम और दलित भी
हुआ मोहरा इसका अब ।

सत्तर सालों से आ‌रक्षण
पी पी अमृत पुष्ट हुये ।
संविधान संशोधन शह से
रक्तबीज बेखौफ जिये ।

हर चुनाव आने से पहले
सत्तापक्ष विपक्षी खेमा ।
भांंझा करते हैं तलवारें
पंथक पंथी संत,उलेमा ।

सरस्वती ने गतिशील को
बुद्धि दी, न दिया विवेक ।
असहिष्णणुता बुद्धिवाद से
नहीं आस करें हम नेक ।

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