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18 Aug 2018 · 1 min read

मुक्तक

खेतों को मुठ्ठी में भरना अब तक सीख नहीं पाया,
यों तो मेरा जीवन बीता सामंती अय्यारों में।
कैसे उसके चाल चलन में पश्चिम का अंदाज़ न हो,
आख़िर उसने सांसें ली हैं, अंग्रेज़ी दरबारों में।

Language: Hindi
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