मुक्तक
कभी जब तोड़ा था मैने , उस बुनियाद का पत्थर ,
उठना दीवार का तब से , वहाँ दुश्वार होता है,
जो आँखों से निकले , सज़ा के आँसू थे उस दिन ,
है बीता वक़्त पर ये , दर्द अब भी बेशुमार होता है ।
कभी जब तोड़ा था मैने , उस बुनियाद का पत्थर ,
उठना दीवार का तब से , वहाँ दुश्वार होता है,
जो आँखों से निकले , सज़ा के आँसू थे उस दिन ,
है बीता वक़्त पर ये , दर्द अब भी बेशुमार होता है ।