मुक्तक
झलक रहा था आँखों में सपनों का जंगल ,
ख़ामोशी से बतलाता था मौसम का दंगल,
मैं बन परिंदा जब शाखों पे चहकती थी ,
छूती थी मेरी पलकें ख़्वाबों का वो जंगल।
झलक रहा था आँखों में सपनों का जंगल ,
ख़ामोशी से बतलाता था मौसम का दंगल,
मैं बन परिंदा जब शाखों पे चहकती थी ,
छूती थी मेरी पलकें ख़्वाबों का वो जंगल।