मुक्तक
जब देखती हूँ सोचती हूँ दम सा घुटता है,
ये मेरे अपने हैं अपनों से डर सा लगता है ,
दुश्मन तो होंगे दुश्मनी भी करेंगे बे-शक ,
न जाने अपनों से दुश्मनी का डर क्यों लगता है ।
जब देखती हूँ सोचती हूँ दम सा घुटता है,
ये मेरे अपने हैं अपनों से डर सा लगता है ,
दुश्मन तो होंगे दुश्मनी भी करेंगे बे-शक ,
न जाने अपनों से दुश्मनी का डर क्यों लगता है ।